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March 15, 2021
तुझ पर मेरा नाम लिखा था,
पढ़ कर मैं कितना रोया था।
ज़ख़्मों में तो तू दिखता था,
कैसे कह दूँ तू मेरा था।
ख़ून टपकता था आँखों से,
चुप था जब मैं हाथ कटा था।
बाहर से क्यों देखा तूने,
अंदर तो मैं महक रहा था।
मर मर कर जीना था हमको,
ये भी कहीं पर लिखा हुआ था।
कहा था तुझसे लौट आना तू,
लेकिन तूने कहाँ सुना था।
बंद थी मेरी आँखें लेकिन,
मैंने तुझको देख लिया था।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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