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March 14, 2021
नींद को बिस्तर दे सकता हूँ,
ख़्वाब भी बेहतर दे सकता हूँ।
क़तरा ख़ुद को कहने पर भी,
तुमको समन्दर दे सकता हूँ।
बिना सरों के जितने काँधे,
मैं सबको सर दे सकता हूँ।
तुम सवाल की खोलो मुट्ठी,
सबके उत्तर दे सकता हूँ।
जान गया हूँ तुम पहाड़ हो,
फिर भी टक्कर दे सकता हूँ।
कितना भी लम्बा रस्ता हो,
मील के पत्थर दे सकता हूँ।
आसमान रहने आए तो,
उसको भी घर दे सकता हूँ।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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