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March 12, 2021
ज़िक्र होठों पर हमारे ज़िन्दगी का है,
हश्र तय लेकिन हमारी ख़ुदकुशी का है.
ख़्वाब लेकर तुम समंदर के चले तो हो,
रास्ता ये भी मगर सूखी नदी का है.
धुप में जलते रहे हैं हम शमाँ बनकर,
क्या भला मक़सद हमारी रौशनी का है.
आईनों के रूबरू भी अजनबी हैं हम,
हाल ये अब तो हमारी बेख़ुदी का है.
सी चुके हैं हम जुबां बस इसलिए अपनी,
वास्ता हमको किसी की दोस्ती का है.
हो गयी बारिश,ख़ुदा का शुक्र है वरना,
हक़ हमारी जिन्दगी पर तिश्नगी का है.
खैरियत उसकी ख़ुदा ही जानता होगा,
ख़त मिला है जो हमें, राजी-ख़ुशी का है.
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