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March 9, 2021
इशारे हमको जो तेरी नज़र से मिलते हैं,
हुकुम ये वो हैं जो तेरी ही दर से मिलते हैं.
नमाज़ पढ़ती हैं खुशियाँ उदास शाखों पे,
परिंदे शाम को जब भी शजर से मिलते हैं.
सफ़र हमारा अलग होके एक जैसा है,
हमारे रास्ते जाने किधर से मिलते हैं.
हमारी नींद ने दरवाज़े रख दिए गिरवी,
हमारे ख्व़ाब तो अब दर-ब-दर से मिलते हैं.
यक़ीन जिनको कभी भी नहीं रहा ख़ुद पर,
मगर वो हमसे बड़े मोतबर से मिलते हैं. मोतबर=विश्वसनीय
ज़ेहन से बाहर तो आते हैं हमसे मिलने को,
ख़याल उनके मगर बेख़बर से मिलते हैं.
हमारी ग़ज़लों से रिश्ता पुराना है शायद ,
सभी के दर हमारे जिगर से मिलते हैं.
( सुरेन्द्र चतुर्वेदी)
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