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December 22, 2020
ज़ेहनों के बीमार तसल्ली देते हैं,
दिखलाके तलवार तसल्ली देते हैं।
झूठे और मक्कार तसल्ली देते हैं,
कुनबे के सरदार तसल्ली देते हैं।
बड़ी तहलकेदार तसल्ली देते हैं,
बिके हुए अख़बार तसल्ली देते हैं।
रात रात भर जाग के काले चोरों को,
मुल्क़ के चौकीदार तसल्ली देते हैं।
ख़ुद्दारी के कितने किस्से गढ़ते हैं,
फिर हमको ग़द्दार तसल्ली देते हैं।
ठगा हुआ महसूस किया करती ख़ुशबू,
फूलों को जब खार तसल्ली देते हैं।
कच्चे घर की हर नाबालिग़ ख़ुशियों को,
चमकीले बाज़ार तसल्ली देते हैं।
सच तो ये है जंग में लड़ते वक़्त हमें,
ग़ज़लों के अशआर तसल्ली देते हैं।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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