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December 20, 2020
चारों तरफ़ तो आग लगी है,
आतिशदान में राख पड़ी है।
किस्मत जाग गई है शायद,
रोने की आवाज़ सुनी है।
मैं सोया हूँ तो क्या तेरी,
याद तो अब तक जाग रही है।
धुआँ धुआँ है चारों जानिब,
कहाँ पे देखो आग लगी है।
चारों तरफ़ तो तन्हाई है,
ज़हन में कितनी धूम मची है।
घर मेरा फ़ुर्सत में सुनेगा,
सन्नाटों ने ग़ज़ल कही है।
तू ही जाने तेरी किस्मत,
मेरी किस्मत तूने लिखी है।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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