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December 19, 2020
रूहानी इक दरिया हूँ,
बहता हुआ कब दिखता हूँ।
सुनती है बस रूह मुझे,
नात का पहला मिसरा हूँ।
है वो मुझसे बापर्दा,
मैं उससे बेपर्दा हूँ।
जिस्म पे अपने रख तो लिया,
लेकिन उसका चेहरा हूँ।
कहीं तो है तामीर मेरी,
मैं जन्नत का नक़्शा हूँ।
मैं उसकी ख़ुशबू लेकर,
हवा पे उसको लिखता हूँ।
फटा हुआ हूँ चाहे मैं,
पर क़िताब का हिस्सा हूँ।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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