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December 16, 2020
हँसती झीलें रोता झरना याद आया,
तुमसे बिछड़ कर जाने क्या क्या याद आया।
घर को भूल के निकल गए थे सुबह सुबह,
शाम ढली तो घर का रस्ता याद आया।
ऐसा ही महसूस हुआ जब अना दिखी,
माँ को जैसे ज़िद्दी बच्चा याद आया।
जब ख़ुद को तन्हा देखा तन्हाई ने,
उसको मैं और मेरा कमरा याद आया।
आईना जब टूटा चेहरे बिखर गए,
हर चेहरे में तेरा चेहरा याद आया।
प्यास न थी तब कई समन्दर दिखते थे,
प्यास लगी तब सूखा दरिया याद आया।
चलते वक़्त जो तुमने पूछा कैसे हो,
जाने क्या क्या उल्टा सीधा याद आया।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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