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December 13, 2020
मैं रहा चुप तो हिचकियाँ बोलीं,
रात भर उसकी चिट्ठियां बोलीं।
बन्द कर दो खुले दरीचों को,
घर की ख़ामोश खिड़कियाँ बोलीं।
सच को हिम्मत से लिख दिया हमने,
काट दो अब ये उंगलियाँ बोलीं।
अब न पढ़ पाएगा कोई हमको,
ये क़िताबों से कॉपियां बोलीं।
हम भी क्या अब जलाए जाएंगे,
सूखे पेड़ों से पत्तियाँ बोलीं।
खुशबुएँ हैं तुम्हारी ख़तरे में,
खिलते फूलों से तितलियाँ बोलीं।
रेत रोने लगी किनारों की,
फिर मिलेंगे ये मछलियाँ बोलीं।
रौशनी को अंधेरे लूटेंगे,
कारखानों की चिमनियाँ बोलीं।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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