Post Views 11
December 11, 2020
मैं जब अपनी थकानों से मिला हूँ,
लगा यूँ आसमानों से मिला हूँ।
तुम्हें छू कर मैं लौटा तब लगा ये,
बहुत ऊँची उड़ानों से मिला हूँ।
मुहब्बत जिनको सूरज ने भी दी है,
मैं ऐसे सायबानों से मिला हूँ।
ठिकाने लग गए जो आदतों से,
कई ऐसे ठिकानों से मिला हूँ।
उगाई उम्र भर ज़ख़्मों की खेती,
मैं ऐसे भी किसानों से मिला हूँ।
मुझे ख़ामोशियाँ अच्छी लगी हैं,
मैं जब भी बेज़ुबानों से मिला हूँ।
अदब जब भी मिला तो ख़ुश हुआ है,
नया होकर पुरानों से मिला हूँ।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved