For News (24x7) : 9829070307
RNI NO : RAJBIL/2013/50688
Visitors - 106069585
Horizon Hind facebook Horizon Hind Twitter Horizon Hind Youtube Horizon Hind Instagram Horizon Hind Linkedin
Breaking News
Ajmer Breaking News: भारी बारिश से हुए हादसे में मृतक के परिजनों व घायलों को राज्य सरकार दे तत्काल उचित मुआवजा |  Ajmer Breaking News: बुधवार दोपहर से हुई तेज बारिश से स्मार्ट सिटी पानी पानी हो गई। |  Ajmer Breaking News: मानसून की पहली बारिश में मेरवाड़ा स्टेट भागचंद जी की कोठी की दीवार का हिस्सा सड़क पर गिरा, |  Ajmer Breaking News: वार्ड 41 की पार्षद नीतू मिश्रा अपने पति रंजन शर्मा के साथ 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए कलेक्टर को ज्ञापन देने पहुंची, |  Ajmer Breaking News: अजमेर ऑनर किलिंग केस में चौथा आरोपी भी गिरफ्तार, सहदेव हत्याकांड में पुलिस ने हत्या के सहयोगी ओर चश्मदीद को पकड़ने में पाई मिली सफलता |  Ajmer Breaking News: अजमेर की डिग्गी बाज़ार में बुधवार अल सुबह 4 बजे फैंसी स्टोर में लगी भीषण आग ,लाखों रुपए का हुआ नुकसान , |  Ajmer Breaking News: मंदिरों की नगरी पुष्कर के परिक्रमा मार्ग स्थित श्री गिरधर गोपाल मंदिर परशुरामद्वारा के पाटोत्सव पर आज अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये गये । |  Ajmer Breaking News: पुष्कर तीर्थ नगरी में राजकीय आदर्श आवासीय वेद विद्यालय पुष्कर का शुभारंभ |  Ajmer Breaking News: वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केन्द्र भवन का हुआ शिलान्यास,6 करोड की लागत से बनेगा क्षेत्रीय केन्द्र एवं मॉडल अध्ययन केन्द्र का भवन- प्रो. सोडाणी |  Ajmer Breaking News: प्रबंध निदेशक के.पी. वर्मा का पंचशील मुख्यालय में आत्मीय स्वागत, वर्मा ने उपभोक्ता संतुष्टि को बताया सर्वोच्च प्राथमिकता | 

अंदाजे बयां: मोर जब चलने लगा पँजों से पहचाना गया

Post Views 11

December 10, 2020

उस तरह ही मैं मेरे शेरों से पहचाना गया

मोर जब चलने लगा पँजों से पहचाना गया,

उस तरह ही मैं मेरे शेरों से पहचाना गया।



जिस्म की ख़ुशबू फ़क़त कपड़े बदलती रह गई,

मैं हमेशा अपने ही ज़ख़्मों से पहचाना गया।



आख़री दम तक रहा आँखों में तेरी ही मगर,

ग़म तेरा फिर भी मेरे अश्क़ों से पहचाना गया।



नाज़ ख़ुद पर कर रही थी शह्र की वो रौशनी

शह्र जो गिरते हुए अंधों से पहचाना गया



यूँ तो थी मीनार भी ऊँची बहुत घर की मगर ,

दूर से ही घर मेरा पेड़ों से पहचाना गया।



सिर्फ़ मंज़िल पर पहुंचना था नहीं काफ़ी मेरा,

थी ग़नीमत ये कि मैं रस्तों से पहचाना गया।



ज़र्फ़ उसका रह गया ज़िन्दा रहा ख़ामोश जो,

हां मगर लफ़्फ़ाज़ तो बातों से पहचाना गया।



सुरेन्द्र चतुर्वेदी


© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved