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September 13, 2020
कोरोनावायरस की वैक्सीन कब आएगी? कब तक आएगी? सबसे पहले कहां आएगी? कैसे मिलेगी? कीमत क्या होगी? और दुनिया में हर एक इंसान तक ये कैसे पहुंचेगी? ये जो सवाल हैं, आज दुनिया के हर इंसान के जेहन में चल रहे हैं। एक साथ चल रहे हैं। बार-बार चल रहे हैं। आइए इनका सच जानते हैं। दुनियाभर की 20 से ज्यादा फार्मास्युटिकल कंपनियां और सरकारें दिन-रात कोरोनावायरस वैक्सीन बनाने के काम में लगी हैं। वे वैक्सीन को लेकर रूलबुक लिख रही हैं। रोज इसे अपडेट भी कर रही हैं। यानी कितनी प्रगति हुई। लेकिन अभी तक महज 10% वैक्सीन ट्रायल सफल हुए हैं। वहीं, एक अनुमान के मुताबिक यदि वैक्सीन बन जाती है तो दुनियाभर में इसकी सप्लाई के लिए करीब 8000 जंबो जेट्स की जरूरत होगी।
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस(एम्स) में रुमेटोलॉजी डिपॉर्टमेंट में एचओडी डॉक्टर उमा कुमार कहती हैं कि कोई भी वैक्सीन आने के बाद इफेक्टिव होगी या नहीं, ये अभी बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि सभी कंपनियां अभी जल्दबाजी में वैक्सीन बनाने में जुटी हैं। दूसरी सबसे अहम बात होगी कि वैक्सीनेशन के बाद जो इम्युनिटी डेवलप हो रही है, वो प्रोटेक्टिव है कि नहीं। यह बात धीरे-धीरे पता चलेगी।
संभव है। लेकिन वैक्सीन के साइड इफेक्ट हो रहे हैं कि नहीं हो रहे, इसे देखने के लिए कुछ समय का इंतजार करना पड़ता है। एक स्टडी के मुताबिक कोरोना से बनने वाली एंटीबॉडीज करीब पांच महीने तक ही प्रभावी हैं। ऐसे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि वैक्सीन कितनी प्रभावी होंगी, क्योंकि दुनिया में वैक्सीन बनाने की होड़ लगी हुई है। इसलिए हमें इसके रिजल्ट को देखने के लिए लंबा इंतजार करना होगा।
डॉक्टर उमा कुमार के मुताबिक वैक्सीन के बहुत सारे टाइप होते हैं। यह लोकल इम्युनिटी डेवलप करती है। ये शरीर में दोबारा किसी इंफेक्शन को बढ़ने नहीं देती है। अगर कोरोना की वैक्सीन ने 80% भी संक्रमण को कंट्रोल कर दिया तो समझ लीजिए कामयाब है, क्योंकि 20% लोग तो हर्ड इम्युनिटी से बच जाएंगे।
इंसान के खून में व्हाइट ब्लड सेल होते हैं जो उसके रोग प्रतिरोधक तंत्र का हिस्सा होते हैं। बिना शरीर को नुकसान पहुंचाए वैक्सीन के जरिए शरीर में बेहद कम मात्रा में वायरस या बैक्टीरिया डाल दिए जाते हैं। जब शरीर का रक्षा तंत्र इस वायरस या बैक्टीरिया को पहचान लेता है तो शरीर इससे लड़ना सीख जाता है। दशकों से वायरस से निपटने के लिए दुनियाभर में जो टीके बने उनमें असली वायरस का ही इस्तेमाल होता आया है।.
कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए यह माना जा रहा है कि 60 से 70 फीसदी लोगों को वैक्सीन देने की जरूरत होगी।
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