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December 24, 2019
#मधुकर कहिन 2204
नागरिकता संशोधन अधिनियम में स्पष्टता का अभाव है
नागरिकता को परिभाषित करने से पहले खुद अपने रिकॉर्ड से नागरिकता सूची बनाये सरकार
नरेश राघानी
आज मुझे मेरा एक मित्र मिला उसने मुझसे पूछा *नरेश भाई जिस तरह का विवाद पूर्ण माहौल बना हुआ है । इसके चलते मैं और मेरा परिवार बहुत चिंतित है* । मैंने उससे पूछा - *क्यों भाई चिंता की क्या बात है ? हम सब भारतीय हैं और अपने देश से बहुत प्यार करते हैं। और रोज़ प्रधानमंत्री और ग्रहमंत्री बोल तो रहे हैं कि इस से किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।* वह बोला कि *भाई वो सब तो ठीक है लेकिन कल यदि इन लोगों ने एनआरसी रजिस्टर में मुझे एंट्री हेतु अगर 1970 के पहले का यानी कि मेरे दादा का कोई सरकारी दस्तावेज मांग लिया तो मैं कहां से लाऊंगा ? मैंने उससे कहा कि - तुम दादा का कह रहे हो मुझसे मेरे पिताजी का मांग लिया तो मैं कहां से लाऊंगा*
गृहमंत्री रोज़ बोल रहे हैं कि *यह कानून केवल पड़ोसी देशों से जो हिन्दू , बौद्ध वगैरह भारत में नागरिकता लेने के इच्छुक हैं और उन देशों में पीड़ित हैं। उनको अपनाने हेतु बनाया गया है।* यह सुन कर तो यही लगता है कि यह कानून *शायद सिर्फ उन्हीं लोगों पर लागू है जो भारत की नागरिकता चाहते हैं।* जिनकी संख्या भी शायद बहुत बड़ी नहीं हैं ।
यदि ऐसा है तो सरकार यह स्पष्ट क्यों नहीं कहती ? की यह एनआरसी केवल बाहर से इस देश में आने वाले पीड़ित वर्ग के लोगों पर ही लागू है ।और इसका जो भारतवर्ष में पहले से ही रह रहे हैं उन से कोई लेना-देना नहीं है। *भारत देश में रह रहे लोग तो वैसे ही भारतीय हैं जिस किसी के पास उसका आधार कार्ड ,वोटर आईडी ,पासपोर्ट या कोई भी सरकारी दस्तावेज है उसे किसी भी प्रक्रिया से गुजरने की ज़रूरत नहीं है।*
जिस पर वह बोला *नहीं भाई !!!! इस एक्ट में न अब तक यह व्याख्या स्पष्ट नहीं है कि किस सरकारी दस्तावेज के अभाव इस देश में रहने वाले को भारतीय नागरिक की नागरिकता को नहीं माना जायेग।*
*और न ही यह स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया से क्या सबको गुज़रना है या केवल पड़ौसी देशों से आये हुए पीड़ित हिन्दू , सिखों, बौद्ध और पारसियों को ?*
मैन कहा - *देखो भाई !!! अगर यह केवल उन लोगों के लिए बनाया गया है जो भारत की नागरिकता चाहते हैं, और किसी अन्य देश में पीड़ित हैं वहां तक तो सही है। यह होना भी चाहिए ।* परंतु यदि इसमें यह भी है कि , जो पहले से ही भारत में रह रहे हैं और जिनके पास पहले ही वोटर आईडी आधार कार्ड या पासपोर्ट है , उन्हें भी अपने पूर्वजों के दस्तावेज जमा कराने होंगे तो यह बिल्कुल गैर वाजिब है।
*पहले खुद अपने रिकॉर्ड से नागरिकता सूची बनाये सरकार*
फिर जब नागरिकता की सूची बनाई ही जा रही है , तो सबसे पहले तो सरकार को लोगों को परेशान करने से पहले खुद अपने ही विभागों से जानकारी लेनी होगी कि *उन्होंने आखिर कितने आधार कार्ड कितने पासपोर्ट कितने वोटर आईडी लोगों को बनाकर पहले ही दिए हुए हैं । और जिनको यह बनाकर दिए हुए हैं, उनके नाम वैसे ही एनआरसी रजिस्टर में चढ़ा देना चाहिए ।* बैठकर लोगों से नागरिकता के दस्तावेज़ मांग कर सूची दुरुस्त करने से *पहले खुद सूची बनाओ तो सही !!!*
*बाकी बचे लोगों की जांच जायज़*
फिर बात रहती है बाकी लोगों की। तो केवल उन पर अगर यह प्रक्रिया लागू की जाए तो बेहतर होगा। यदि आप यह कहते हैं कि हम एक धर्म विशेष को इस प्रक्रिय में उठाकर ताक में रख देना चाहते है ? तो भी इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। *क्योंकि जो इस देश का ही नही है वो क्या हिन्दू और क्या मुसलमान ?*
लेकिन *यदि उनमें से भी किसी के पास अगर पहले से ही भारत देश के वैलिड आधार कार्ड वोटर आईडी या पासपोर्ट बने हुए हैं !!! तो उन्हें तो भारतीय नागरिक मानना ही पड़ेगा। ताकि वह आराम से सुरक्षित महसूस कर सकें।*
*शांति कैसे स्थापित हो ?*
यदि सरकार वाकई चाहती है कि यह देश भर में लगी आग शांत हो जाये तो पहले तो स्पष्ट बात कहनी होगी। और जीएसटी की तर्ज पर बिना सोचे समझे और पूरी तैयारी के पास किये गए इस एक्ट में , *स्पष्टता और एडजस्टमेंट लाना होगा* । जब किसी को यह मालूम होगा कि उसकी जेब में पड़ा आधार कार्ड या वोटर आईडी कार्ड अथवा पासपोर्ट पर्याप्त है एनआरसी की लिस्ट में शामिल होने के लिए , तो क्यों विरोध करेगा ? और क्यूँ सड़कों पर आकर पत्थर हाथ में उठाएगा ? वह अपना काम करेगा क्यों झंझट में पड़ेगा ? *सरकार को चाहिए कि वह पूरी तरह से स्पष्ट शब्दों में कह दे कि हम किन दस्तावेजों के अभाव में नागरिकता पर प्रश्न चिन्ह लगायेंगें ? और ये सब केवल नई नागरिकता चाहने वालों के लिए है या सभी के लिए ?*
*जनसंख्या नियंत्रण कानून अभी आना बाकी है*
एक बड़ी वरिष्ठ भाजपा नेता से बात करने पर ज्ञात हुआ कि सरकार बहुत जल्द जनसंख्या नियंत्रण पर भी एक कानून लाने वाली है । जिसके चलते किसी भी भारतीय नागरिक को दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर सरकारी सुविधाएं मिलना बंद हो जाएंगी। यहां पर दूसरे शब्दों में यह कई है कि इस आदेश की सख्ती से पालना करनी होगी कि बच्चे सिर्फ दो ही पैदा करने हैं । अब सवाल यह है कि - *एक तरफ तो जनसंख्या नियंत्रण हेतु हम कानून लाना चाहते हैं ताकि देश के हर नागरिक तक सुविधाएं पहुंचा सके। दूसरी तरफ हम खुद बाहरी पीड़ित नागरिकों को खुद नागरिकता देने हेतु कानून बना रहे हैं। यह हल्का सा विरोधाभास नहीं है तो और क्या है ?*
*नारी सम्मान की रक्षा हेतु एक से ज्यादा विवाह नहीं कर पाएंगे भारतीय नागरिक*
उस नेता ने मुझसे यह भी कहा - की आने वाले समय में *महिलाओं की सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी भारतीय नागरिक को केवल एक बार विवाह करने की ही अनुमति होगी और पहली पत्नी के जिंदा रहते दो पत्नियां रखना गैरकानूनी माना जाएगा ।* चाहे वह नागरिक किसी भी धर्म से क्यूँ न हो। मैंने उससे पूछा कहीं आप इस तरह का कानून लाकर किसी धर्म विशेष को तो टारगेट नहीं कर रहे हैं ? जिस पर उसने कहा कि - *नहीं यह पूर्णतया इंसानियत के दायरे के तहत सोच समझकर महिला सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।* जहाँ तक जनसंख्या नियंत्रण की बात है, इस बात में वाकई बहुत दम है किस देश को बहुत जरूरत है अपनी जनसंख्या को नियंत्रण में रखने की। क्योंकि *हमारे पास खाने वाले मूँह इतने बढ़ चुके हैं लेकिन इतने कमाने वाले हाथ नहीं है। नौकरियाँ नहीं है । रोज़गार नहीं है।*
*अब जहाँ धर्म सम्प्रदाय का संघर्ष तो सदियों से इस देश में अपनी जगह चल ही रहा है और चलता ही रहेगा । परंतु इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आर्थिक आज़ादी की जंग भी लड़ी जाए। ताकि सबको दो वक्त की रोटी और छत आसानी से मिल सके।*
जय श्री कृष्ण
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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