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November 30, 2019
#मधुकर कहिन 2193
सौल्यूशन चाटने की लत बनी हुई बच्चों की जान की दुश्मन
सैकड़ों बच्चे इस जानलेवा नशे की चपेट में ।
सरकार की आंखें बंद
नरेश राघानी
इस बच्चे का नाम पवन कुमार है पवन अजमेर का रहने वाला है l और अजमेर के बजरंगगढ़ चौराहे पर सर्किट हाउस की तरफ जाती सड़क किनारे अक्सर आप पवन को एक कोने में बैठा हुआ देख सकते हैं। पवन के तीन भाई बहन है। दो बहने हैं चिंकी और चुटकी और एक भाई भी है पवन के माता पिता का देहांत हो चुका है उनके पास अब खाने पीने की व्यवस्था तक के लिए सिर्फ भीख मांगने का ही रास्ता बचा है l पवन पिछले 8 साल से इसी बजरंगगढ़ चौराहे पर भीख मांगता था और अपना काम चलाता था l इसके अन्य भाई-बहन भी यही करते थे l लेकिन एक दिन पवन को किसी ने व्हाइटनर या एड्रेस सलूशन चाटने की बुरी आदत डाल दी । आज कुछ वर्ष बाद पवन बहुत गंभीर रूप से बीमार है उसके शरीर भर में चकत्ते पड़ गए हैं l और सलूशन का जहर चाटने की वजह से उसके पेट में और आंतों में इन्फेक्शन है l अब पवन की बीमारी का कोई इलाज नहीं है । या कहिए कि पवन के पास इलाज के लिए पैसे नहीं है। पवन जैसे सैकड़ों बच्चों का अजमेर शहर में यही आलम है पढ़ने की उम्र में और शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने की उम्र में यह बच्चे व्हाइटनर यहां सलूशन चाटने की बुरी लत के शिकार बने हुए हैं इस तरह की दर्दनाक जिंदगी जीने को मजबूर है सर्किट हाउस की तरफ हर हफ्ते सैकड़ों अधिकारियों की गाड़ियां और यहां आने जाने वाले वीआईपी की गाड़ियां आती जाती होंगी लेकिन किसी भी गाड़ी वाले को आज तक पवन की जैसे बच्चों की कभी कोई सुध नहीं है । स्वास्थ्य संवर्धन , बाल संरक्षण और मानव अधिकार जैसी बड़ी-बड़ी बातें करने वाली सरकार और उसके ज़िम्मेदार कारिंदे क्या सिर्फ आंकड़ों मैं ही मानव सेवा का दम भरते रहेंगे या फिर कभी इन जिम्मेदार लोगों को पवन जैसे सैकड़ों बच्चों के दर्द का एहसास भी होगा । शहर में इस तरह के नशे की बिक्री पर अब तक कोई भी सख्त कदम प्रशासन द्वारा नहीं उठाया गया है , जिस से की ऐसे बच्चों को इस नशे की लत से बचाया जा सके। संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जे एलएन में भी नशामुक्ति केंद्र संचालित है लेकिन वहां तक भी पवन की आवाज़ शायद अब तक नहीं पहुंची है। होराइजन है न्यूज़ की टीम को पवन की तकलीफ का वीडियो हमारे एक दर्शक आशीष ने भेजा है जो कि वाकई साधुवाद का पात्र है । हम यह स्टोरी इस उम्मीद से चला रहे हैं कि शायद बाल संरक्षण आयोग या शहर के स्वास्थ्य महकमे को पवन जैसे सैकड़ों बच्चों की तकलीफ का अहसास हो और सरकार के आंकड़ों से निकलकर मदद वाकई इन तक पहुंचे।
जय श्री कृष्ण
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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