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October 25, 2019
2184 मधुकर कहिन
धनतेरस पर धन को तरस रहे पतियों की आत्मकथा ....
नरेश राघानी
सर्वप्रथम तो आपको आज धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं। ईश्वर करें आप इस धन को तरस रहे बाजार की तरह धन हेतु कभी ना तरसे ।
आज की धनतेरस वैसे ही मनाई जा रही है, जैसी शायद आज से एक महीना पहले किसी ने भी सोची भी नहीं थी। मंदी और नोटबन्दी के असर की मार झेल रहे लोग भगवान जाने कैसे अचानक इतना खर्चा करने लगे हैं ? पता नहीं कैसे ? या फिर यह भी फर्जी मीडिया हाइप जैसा कोई आर्थिक स्टंट है ....
खैर !! सुबह-सुबह धर्मपत्नी ने बुलाकर लिस्ट थमा दी।जिसके अंतर्गत कुछ बर्तन , चांदी के कुबेर जी , मिठाइयाँ, स्टाफ को बांटे जाने वाले छोटे-मोटे तोहफे, इत्यादि इत्यादि
इत्यादि शामिल थे । लिस्ट देखकर ऐसा लग रहा था कि धर्मपत्नी मुझे अंबानी की औलाद समझ बैठी है। जबकि मेरा हाल में ही जानू ....
मरता क्या न करता साहब !!! लिस्ट लेकर चल पड़ा बाजार की ओर । जिस तरफ देखो गृहस्थ योग से पीड़ित पतियों की कतारें बाजार में लगी हुई दिखाई दीं। कोई पत्नी के थैले संभाल रहा है। तो कोई छोटे-छोटे बच्चे गोद में लिए बर्तनों की दुकान पर लाइन में लगा हुआ है । मेरे बचपन का एक मित्र कल रात घूमता घूमता गाड़ी में मिल गया। उसने शायद दो घूँट लगा रखे थे । वह भी इसी बात का ही रोना रो रहा था। कह रहा था - यार !!! पत्नियों को तो पता नहीं हममें साक्षात कुबेर भगवान क्यों दिखाई देते हैं ? जबकि मार्केट की हालत बहुत खराब है । पता नहीं कितने महीनों से धन को तरस रहे इस मार्केट कि अचानक तेरस आ जाने से कैसा अजीब दृश्य बन गया है ? साला अखबार खोलने से डर लगता है
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