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October 2, 2019
2172 #मधुकर कहिन
केवल एक गांधी जयंती के रोज़ ही क्यों जागता है संघ का गांधी प्रेम ? बाकी साल के 364 दिन गोडसे के गुणगान क्यूँ ?
नरेश राघानी
आज महात्मा गांधी का जन्मदिन है। और एक बहुत ही प्रचलित समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर सरसंघचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - डॉ मोहन भागवत द्वारा लिखे गए, एक लेख को प्रकाशित किया गया है। जिसमें डॉ मोहन भागवत ने महात्मा गांधी को सामाजिक क्षमता और समरसता के आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया है । और यह भी अपील की है कि आम जनमानस को अपने आचरण में गांधी उतारना चाहिए। इस लेख में मोहन भागवत ने बताया कि 1936 में वर्धा के पास लगे संघ शिविर में गांधीजी आये थे । विभाजन के रक्त रंजित दिनों में दिल्ली में उनके निवास स्थान के पास लगने वाली शाखा में भी गांधीजी का आना हुआ था । यह जानकारी भी दी गई है की संघ में रोज प्रातकाल एक स्त्रोत के द्वारा महापुरुषों की परंपरा का स्मरण करने की प्रथा स्थापना काल से ही है । 1963 में इसमें कुछ नए नाम जोड़कर गांधी जी का नाम भी उस एकात्मता स्त्रोत के जरिए जोड़ा गया और इस एकात्मकता स्त्रोत का उच्चारण करते हुए आज भी संघ के लोग रोज प्रातकाल गांधी का स्मरण करते हैं।
सुनने में बातें बड़ी अच्छी लगती है। परंतु डॉ मोहन भागवत यदि वाकई गांधी विचार से इतने प्रभावित हैं , तो उन्हीं के दल के लोग गांधी जी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को देशभक्त की उपाधि क्यों देते हैं ?? क्या उनके लोग उनके इस विचार से सहमत नहीं हैं ??
फेसबुक पर अक्सर ऐसी बातें पढ़ने को मिलती है जिन्हें पढ़कर लगता है कि हम आखिर किस युग में जी रहे हैं ?? इसी तरह का एक उदाहरण कुछ समय पहले एक भाजपा के पदाधिकारी ने प्रस्तुत किया । उसने फेसबुक पर चल रही है एक गांधी गोडसे बहस के दौरान यह तर्क दिया , कि जिस पिस्तौल से महात्मा गांधी की हत्या गोडसे द्वारा की गई थी । उस पिस्तौल की नीलामी करके देख लीजिए पता चल जाएगा कि गोडसे देशभक्त थे या आतंकवादी ???
एक तरफ तो भाजपा संघ को अपनी आधारशिला मानकर वैचारिक दृष्टिकोण से संघ के आदर्शों का पालन करने वाली राजनीतिक दल माना जाता है । उसी राजनीतिक दल के लोग जब चुनाव में उतरते हैं , तो सत्ता के लोभ में गली-गली देश के बंटवारे को लेकर महात्मा गांधी के लिए आपत्तिजनक बयान देते हैं । और साध्वी प्रज्ञा जैसे लोग महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहकर चुनाव जीत जाते हैं । तब यह गांधी विचार के लिए उनकी सद्भावना कहां चली जाती है ? फेसबुक पर मोदी समर्थक महात्मा गांधी की आपत्तिजनक तस्वीरें डालकर गांधी विचार के विरोध की जड़ युवा पीढ़ी के ज़ेहन में बोते हैं, तब यह गांधी दर्शन उन्हें क्यों नहीं सूझता है ?
फिर मात्र गांधी जयंती के दिन शायद अपनी झेंप मिटाने के लिए छदम गांधी भक्त बनकर गांधी को आदर्श बताते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत, की यह बातें आखिर बुद्धिजीवी वर्ग कैसे हजम कर सकता है ??? यह अपनी तो समझ के बाहर है। आप लोगों में से किसी को कुछ समझ आये तो अवश्य समझाएँ ... आपके नज़रिये का ससम्मान स्वागत है।
जय श्री कृष्ण
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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