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August 31, 2019
2164 #मधुकर कहिन
*हर उम्र की हसीनाओं से मीटिंग के लिए रोज़ सुबह खोलें अजमेर का कोई भी अखबार ...*
*ऐसे विज्ञापनों के लोभ से गिर रही अखबारों की गरिमा ..*
नरेश राघानी
इन दिनों रोज सुबह अक्सर जब कोई भी अखबार खोलता हूं , तो उसमें *क्लासीफाइड विज्ञापन के पेज में* कुछ ऐसे विज्ञापनों की लाइनों पर नजर पड़ती है, जो कि *हाथ में थामे हुए अखबार का ब्रांड देखकर उस अखबारी ब्रांड की गरिमा को ठेस पहुंचाती हुई दिखाई देती है।* बिल्कुल इसी तरह का विज्ञापन आज मेरी नज़रों के सामने फिर आया । जैसे ही मैंने आज सुबह *अजमेर का एक विख्यात अखबार* खोला। तो उस अखबर में जो विज्ञापन छपा था , वह जस का तस मैं आपको यहां लिख कर बता रहा हूं। विज्ञापन की भाषा कुछ ऐसी थी -
*Real life Friendship Club , हर उम्र की हसीनाओं से मीटिंग करें 20000 - 25000. कमाए वरना पैसा वापस। संपर्क करें* 85*****950 ,88*****110
पहले तो मुझे बड़ा अटपटा लगा कि आखिर यह किस चीज का विज्ञापन है ? और मन में यह सवाल भी उठा कि *आखिर यह विज्ञापनदाता क्या बेचना चाह रहा है ? और वह भी एक प्रतिष्ठित अखबार में विज्ञापन के माध्यम से ...*
मैंने ऑफिस आकर मेरे सहयोगी यश से इस विज्ञापन के बारे में बात की। तो उसने कहा - *सर यह विज्ञापन दरअसल हर उम्र के कामुक प्रवृत्ति के मर्दों को आकर्षित करने के लिए है। जिसके तहत इन नंबरों पर कॉल करने से यह लोग संपर्क करने वालों से कुछ धनराशि अपने खाते में ट्रांसफर करवाते हैं। और उनको उनकी उम्र अनुसार कुछ महिलाओं के नंबर दे देते हैं । और यह कामुक प्रवर्ति के मर्द उन महिलाओं से फोन पर बातें करके संतुष्टि प्राप्त करते हैं। वह महिलाएं ऐसे मर्दों को बातों से लुभा कर अपने पास बुलाती है। और सहमति से उनके साथ संसर्ग भी करती हैं। जिसके लिए उन मर्दों को उन महिलाओं से धनराशि की अभिलाषा भी होती है। इसे आप एक तरह की पुरुष वैश्यावृति भी कह सकतें हैं। अधिकांश कामुक प्रवर्ति के युवा और अधेड़ इस तरह के विज्ञापनों के जाल में फंस कर भारी मुसीबत में पड़ जाते हैं। जिस से उनका निजी जीवन नष्ट हो जाता हैं।*
सोच कर मुझे बड़ा दुख हुआ कि , जो *प्रतिष्ठित अखबार सामाजिक सरोकार, समाजिक उद्धार के ठेकेदार बने फिरते हैं। और नेताओं के दुष्ट चरित्र होने की खबरें बड़ी बड़ी सुर्खियों में छपते हैं। ऐसे अखबार आखिर विज्ञापन द्वारा अर्जित धन के लोभ में किन हदों तक गिर चुके हैं ?* फिर पुलिस और *प्रशासनिक महकमा* भी तो इस तरह के विज्ञापन रोज़ पढ़ता ही होगा। यह सब विज्ञापन देखकर वह भी आखिर चुप क्यों है ? आखिर क्यों नहीं इस तरह के विज्ञापनों पर सरकार द्वारा रोक लगाई जाती ? *क्या दो या तीन हज़ार का विज्ञापन किसी भी अखबार को अपनी गरिमा से ज्यादा प्रिय हो सकता है ?* यदि ऐसा है ... और ऐसा *सामाजिक प्रदूषण अखबार खुद विज्ञापन के माध्यम से परोस रहा है* , तो फिर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर , *अपनी बड़ी-बड़ी मीडिया की दुकानें चला रहे इन अखबारों की नैतिकता का भारी-भरकम आडंबर आखिर किस काम का है ?*
मेरी नजर से समाचार पत्र अपने आप में आम लोगों के भरोसे का स्तंभ है । और *किसी भी समाचार पत्र को इस तरह का सामाजिक प्रदूषण फैलाने वाले बेशर्म विज्ञापन बिल्कुल भी प्रकाशित नहीं करने चाहिए। ऐसे विज्ञापनों को अखबार में प्रकाशित होता देखकर ,उस अखबार की साख भी कहीं न कहीं आम पाठक की नजर में गिरती जरूर होगी।* वेश्यावृत्ति को अवैध करार देने वाला हमारे देश का कानून इस तरह के विज्ञापनों पर तुरंत रोक क्यों नहीं लगाता है ?
*खैर ... यह दुनिया बहुत बड़ी है !!! और इसमें न जाने क्या क्या चल रहा है ? परंतु फिर भी मेरा मानना यह है कि आपको यदि कुछ गलत होता दिखाई दे रहा है। तो आप उसपर बोले जरूर । उस पर अपनी राय जरूर रखें ।* क्या पता आपके बोलने से ही बाकी लोग जाग जाएं ,आपकी बात से सहमत हों जाएं और वह सहमति एक दिन बड़ा बदलाव लाए।
*तो इसलिए बाबू !!! अपुन ने तो अपना काम कर दिया है। अब बाकी यह देखना है कि आखिर किस किस का जमीर इस शहर में अब तक जिंदा है ?*
जय श्री कृष्ण
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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