अंदाजे बयां: बापडे टीचर ,बारिश और कलेक्टर साहब - सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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August 19, 2019
अजमेर पानी में नहाया हुआ है ।कहीं डूब रहा है तो कहीं तैर रहा है ।जिला कलेक्टर साहब भयंकर संवेदनशील हैं।जानते हैं कि उनको कब ,कहां क्या करना है। बच्चे परेशान होंगे इसके लिए उन्होंने कल स्कूलों की छुट्टी भी कर दी ।बच्चे स्कूल नहीं गए मगर अध्यापकों और कर्मचारियों को स्कूल जाना पड़ा ।कलेक्टर जी के आदेश ही कुछ ऐसे थे। हमेशा ऐसा ही होता है। अधिकारी जानते हैं कि सरकारी नौकर और ख़ास तौर से टीचर्स तो ज्यादा ही जांबाज होते हैं।
जिला कलेक्टर साहब ने जो आदेश बारिश की संभावनाओं को देखते हुए जारी किए उसका मैं स्वागत करता हूँ।बच्चों की छुट्टी मगर अध्यापकों को जाना पड़ेगा। यह अच्छा आदेश है। जब जिला कलेक्टर भारी बारिश में अपने ऑफिस जा सकते हैं तो अध्यापक क्यों नहीं जा सकते। मासूमों को छुट्टी दी जा सकती जांबाज़ टीचर्स को नहीं।वैसे भी मास्टर लोग तो बापडे ही होते हैं। उन्हें किसी भी तरह बिना शर्त पेला जा सकता है। कहीं भी पेला जा सकता है ।उनके जज्बातों को मैदान बनाकर खेला जा सकता है ।शहर में बारिश तो सिर्फ़ बच्चों के लिए है ।अध्यापकों का बारिश से क्या लेना देना वो तो जन्म ज़ात बाहुबली होते हैं ।आग उगलती तेज गर्मी में जब बच्चों की छुट्टी की जाती है तब भी शिक्षकों और शिक्षिकाओं को बुला लिया जाता है। क्योंकि शिक्षक होते ही इतना मजबूत हैं।वो पानी में गल सकते हैं न आग में जल सकते हैं।न उन्हें वायू सुखा सकती है न उड़ा सकती है।
बहता हुआ पानी शिक्षकों को पहचानता है।उनका रिश्तेदार लगता है। उन्हें सलाम करते हुए रास्ता दे देता है ।सड़कों के खड्डे आती हुई अध्यापिका को देखते ही कहने लगते हैं कि बहन जी साड़ी ज़्यादा ऊपर मत करना ।हम इतने गहरे नहीं ।
शिक्षक और शिक्षिका बने ही ऐसी मिट्टी के होते हैं कि उन पर किसी भी मौसम का कोई असर नहीं होता ।उन्हें गांवों ,ढाणियों ,पहाड़ों नदियों कहीं भी भेजा जा सकता है। उनके बच्चों को अनाथ समझ कर किसी भी काम मे लगाया जा सकता है। ज़िला कलेक्टर जी !!वाकई आप के आदेश शिरोधार्य हैं।
आपके मास्टर मास्टरनी हर हाल में स्कूल पहुंच कर ही दम लेते हैं।नौकरी जो करनी है ।
भले ही उन्हें घर के बाहर बह रहे नालों में बह कर ही जाना पड़े । सरकारी आदेश की अनुपालना तो करनी ही पड़ेगी।चाहें आप उनको मयूरासन कराएँ , शीर्षासन कराएं या शवासन।वे करेंगे ही।
मेरे ख्याल से आना सागर में नावों का नया ठेका हो गया है ।उनको किराए पर नावें देने का प्रावधान बना दिया जाए ताकि टीचर्स नावों की शेयरिंग करके स्कूल पहुंच जाएँ। वैसे ही जैसे टैक्सी शेयर करके पहुंचते हैं।वैसे मास्टर मास्टरनियों को आर्ट क्राफ्ट योजना के अंतर्गत बांसों की नावें बनाना भी सिखाया जा सकता है ।इन कर्मचारियों की आप चिंता ना करें। इनके इरादे हैं फौलादी और मजबूरियाँ आसमानी होती हैं ।उनके पास आप जैसे सरकारी ड्राइवर शुदा वाहन नहीं होते मगर बहता हुआ पानी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है ।उसकी क़दम क़दम पर अग्नि परीक्षा ली जानी चाहिए ।अगर ग़लती से स्कूल में आग भी लग जाए तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ कर स्कूल का सामान बचाना चाहिए।सामान राष्ट्रीय संपत्ति होता है उसका नुक़सान बर्दास्त नहीं किया जा सकता।टीचर्स का क्या,वो तो एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं।
स्कूल के बच्चों की छुट्टी कर दी और अध्यापक अध्यापको को सही समय पर पहुंचने का आदेश दे दिया। मेरा मन प्रसन्न हो गया।
मैंने कल सुबह देखा कि तेज बारिश हो रही थी।नला बाजार में तेज़ी से पानी बह रहा था।तभी कुछ अध्यापक हंसते मुस्कुराते बहते पानी मे कूद गए।लोग चिल्लाने लगे।क्या कर रहे हो मर जाओगे।कूदने वाले लोग चिल्लाए "नहीं मरेंगे ।हम मास्टर हैं।"उनके हाथों में ज़िला कलेक्टर साहब के आदेश थे।मज़ेदार बात यह थी कि वो पानी के साथ-साथ अपने आप बहे चले जा रहे थे।कमाल की बात ये हुई कि वो सही समय पर स्कूल पहुंच भी गए। ये बात अलग है कि जिसे जिस स्कूल में जाना था वो उसमें न पहुंचकर दूसरे स्कूल में पहुंच गए। अब जिला कलेक्टर साहब को इतनी छूट तो बापडे टीचर्स को देनी ही पड़ेगी।
इधर ज़िला कलेक्टर साहब ज़िले को बारिश से बचाने में जुट गए हैं।उनकी संवेदनाओं का बांध बीसलपुर बना हुआ है।बस छलकने को ही है।जल्द ही शायद गेट खोलने पड़ जाएं।बाढ़ पीड़ित बस्तियों के लोग संयम रखें।उनको फोन ना करे क्यों कि वो जब अपने मातहत अधिकारियों के ही फोन नहीं उठा रहे तो आपके कहाँ से उठाएंगे।उनकी चिंता आपकी चिंता से बहुत बड़ी है।उन्होंने आप जैसे लोगों की चिंता को अपनी एक महिला अधिकारी के लिए छोड़ दिया है।आप उनका ही दमन पकड़ें।कृपया कलेक्टर साहब को तंग ना करे।