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August 14, 2019
2159 #मधुकर कहिन
*स्वतंत्रता दिवस से एक रोज़ पहले की त्रासदी ... से समझ आएंगे लोकतंत्र के सही मायने*
नरेश राघानी
आज 14 अगस्त है । 1947 में आज ही के दिन अखंड भारतवर्ष की अवाम पर जो वज्रपात हुआ , उस वज्रपात के चलते , *आज ही के दिन कुछ लोगों द्वारा लाहौर और अमृतसर के बीच एक लकीर खींच कर यह तय कर दिया गया कि - कौन कहां रहेगा ?* हजारों की तादाद में लोगों को यह निर्देशित कर दिया गया कि पाकिस्तान सिर्फ मुसलमानों के लिए है और हिंदुस्तान हिंदुओं के लिए । *सैकड़ों ऐसे परिवार जो इस फैसले को नामंजूर करते थे उनकी पीड़ा दोनों मुल्कों की आज़ादी के जश्न के नीचे दबा दी गई।*
तब से लेकर आज तक सभी अपने अपने ढंग से लोकतंत्र को परिभाषित करते आ रहे हैं। पिछले 10 सालों में इस देश में जो माहौल उत्पन्न हुआ है , *उस माहौल के चलते युवा पीढ़ी सोशल मीडिया पर बैठकर लोकतंत्र की अलग-अलग परिभाषाएं गठित कर रही है ।* सोशल मीडिया के लगभग 23 माध्यमों पर युवा पीढ़ी का रिएक्शन पढ़ कर ऐसा लगता है, *कि उन्हें यह फीड कर दिया गया है कि लोकतंत्र में जो बहुमत चाहता है वही होना अनिवार्य है। या फिर की अगर बहुमत किसी गलत चीज के पक्ष में है तो भी वही सही और लोकतांत्रिक है।* जबकि *लोकतंत्र केवल बहुमत का सम्मान करना भर नहीं है। अपितु लोकतंत्र वह है जिसमें अल्पमत में बैठे लोग भी अपनी आवाज को दबा हुआ महसूस ना करें। बहुमत में बैठे लोग अल्पमत में बैठे हुए लोगों के अधिकारों का भी उतना ही ख्याल रखें जितना खुद का रखते हैं। तब जाकर सही मायने में लोकतंत्र की स्थापना होती हुई किसी भी देश में दिखाई देगी।* केवल भीड़ को अपनी कुर्सी बचाने के लिए खुश करना लोकतंत्र का संरक्षण नहीं है। अपितु कम संख्यक लोगों को भी यह लगे की वह बहुमत के दबाव में नहीं है , इसके भी मायने हैं।
एक नए तरह का लोकतंत्र पिछले 10 सालों में स्थापित किया जा चुका है । जिसमें *सरकार की आलोचना करना देशद्रोह की श्रेणी में गिना जाने लगा है ।* जबकि अल्पमत में बैठे लोग भी कहीं न कहीं उसी जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि है। जिस जनसमूह ने बहुमत में बैठे लोगों को ताकत प्रदान की है । *यदि अल्पमत में बैठे जनप्रतिनिधियों के सर पर देशद्रोही करार किए जाने की तलवार मंडराने लगे तो यह ऐसे ही है जैसे कि उनके पीछे जुड़े सैकड़ों वोटरों को भी देशद्रोही करार दे दिया जाए ।*
*मानता हूं जम्मू कश्मीर और 370 हटाये जाने का फैसला बिल्कुल सही है। और इस संक्रमण काल में सख्त कानून व्यवस्था बहुत जरूरी है। परंतु बहुमत के डंडे से किसी का भी सर फोड़ देने से बेहतर होगा, उस सिर के अंदर बैठे दिमाग पर कब्जा किया जाए। उस बीमार दिमाग में बैठे जीवाणु पर हमला किया जाए जो उसे असुरक्षित महसूस करवाता है ।* संक्रमित लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा की जाए, ताकि वह लोग जो भारत जैसे मजबूत लोकतंत्र में विश्वास करना छोड़कर मुख्यधारा से हट गलत राह पर जा चुके हैं , वह वापस आ सकें। *परंतु ऐसे सकारात्मक विचार के लिए सत्ताधारियों के पास न समय दिखाई देता है , न सोच। हर 5 साल बाद चुनाव फिर जीत लेने के दबाव में हर चीज और हर समस्या का इलाज फटाफट कर दिया जाता है।* बिना यह सोचे समझे कि इसका क्या असर होगा। *नक्शों पर धुंधली पड़ चुकी लकीरों को जल्दबाजी में फिर गहरा देने से ज़ख्म तो हरे हो जाते हैं लेकिन दिल दुरुस्त* नहीं हो पाता। *सोशल मीडिया के गटर में पड़ी हुई हर चीज़* को मुद्दा बना लेने की आदत देश की युवा पीढ़ी को सुधारनी होगी। *तथ्यों की समझ का विकास करना होगा और यह समझना होगा कि यह स्मार्ट फोन जो आपकी जेब में पड़ा हुआ है वह किन हदों तक आपको बेवकूफ बना रहा है ?* तभी कल आने वाला आज़ादी का उत्सव *कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से लेकर कश्मीर के लाल चौक* तक परिपूर्णता से मनाया जा सकेगा।
*आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की अग्रीम शुभ कामनाएँ*
*जय हिन्द*
जय श्री कृष्ण
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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