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#मधुकर कहिन: सीसी डे के मालिक सिद्धार्थ की आत्महत्या ने खड़े किए देश में व्याप्त सख्तआयकर व्यवस्था पर सवाल

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July 31, 2019

2150 # मधुकर कहिन

 *सीसी डे के मालिक सिद्धार्थ की आत्महत्या ने खड़े किए देश में व्याप्त सख्तआयकर व्यवस्था पर सवाल* 

 *इस देश में उद्योग पतियों हेतु बिगड़ चुका माहौल है ज़िम्मेदार* 


नरेश राघानी 

 विश्व प्रसिद्ध *कॉफ़ी पार्लर सीसी डे के मालिक , वीजी सिद्धार्थ ने आर्थिक कठिनाई और इनकम टैक्स विभाग की सख्ती के दबाव में आकर आत्महत्या कर ली है। इस खबर से पूरा उद्योग जगत स्तब्ध है। इस घटना की वजह से उद्योग जगत में मौजूदा सरकार की आर्थिक नीतियों को उद्यमियों के लिए घातक होने के दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। अभी कुछ रोज़ पहले ही जेट एयरवेज के फेल हो जाने के झटके से ही देश के व्यापारी वर्ग का मानसिक संतुलन नहीं उबर पाया है उस पर सीसी डे का यह दूसरा वज्रपात !!!* 


 *सिद्धार्थ ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि* 


 *लाख कोशिश के बावजूद मैं फ़ायदे वाला कारोबार नहीं खड़ा कर सका।और अब वो दबाव नहीं झेल सकते हैं। क्योंकि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ़ से भी उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है।* 

हालांकि आयकर विभाग ने दावा किया है कि, विभाग ने किसी को प्रताड़ित नहीं किया है। उन्होंने बस विभागीय नियमों का पालन किया है । जबकि 29 जुलाई को ग़ायब होने से पहले सिद्धार्थ ने 16,00 करोड़ रुपए के क़र्ज़ लेने की कोशिश भी की थी। सितंबर 2017 में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने सिद्धार्थ के कई ठिकानों पर छापामार कार्यवाही करते हुए सख्ती बरती था। जिस से यह स्तिथि और विकराल रूप धारण कर गयी।

सिद्धार्थ का एक इंटरव्यू किसी अंग्रेज़ी चैनल पर देख रहा था।जिसमें सिद्धार्थ अपने जीवन के विषय में बताते हुए जो कहा वह उनकी सोच दर्शाता है।

 *सिद्धार्थ ने कहा -* 

 *एनडीए की परीक्षा पास नहीं कर पाया तो बहुत दुख हुआ था। एनसीसी के बाद मैं निश्चिन्त था कि सेना में जाना है । मैं देश की लिए लड़ना चाहता था। मैं मंगलुरु सेंट अलोयसिस कॉलेज में अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर रहा था। कॉलेज के बाद कम्युनिस्ट पार्टी की लाइब्रेरी में जाता था। दस रुपए में सदस्यता मिलती थी और सदस्य बन जाने के बाद हर हफ़्ते अच्छी किताबें मिल जाती थीं। मैं रॉबिन हुड बनना चाहता था। अमीरों को लूट ग़रीबों में बाँटना चाहता था। लेकिन बाद में अहसास हुआ कि भारत वाक़ई बहुत ग़रीब देश है। यहां लूटने के लिए है ही क्या?  अच्छा होगा कि हम पहले पैसे बनाएं और यह बिज़नेस से ही होगा। जब मैंने पिता से कहा कि मैं अपना बिज़नेस शुरू करना चाहता हूं तो उन्होंने तत्काल कहा- मूर्ख हो तुम। जो तुम जी रहे हो वो ख़राब जीवन नहीं है । मेरे परिवार में बहुत ज़्यादा पैसे का होना अच्छा नहीं माना जाता था। बहुत खर्च और विलासिता वाली जीवन शैली हमारे घर में वर्जित थी। ज़्यादा पैसों वालों के लिए मेरे परिवार में आदर नहीं था। जो समाज के लिए कुछ करता है उसे लेकर इज़्ज़त का भाव था। मैंने चिकमंगलूर में कई ऐसे लोगों की कहानियां सुनी थीं जो अपने अच्छे कामों के लिए जाने जाते हैं। मेरे पिताजी हमेशा कहते थे कि पैसे से ज़्यादा नाम कमाना अहम है। यही बात मैं अपने बच्चे ईशान और अमर्त्य से कहता हूँ।* 


 *ऐसे विचारों वाले सिद्धार्थ भले ही कारोबार में असफल रहे हों लेकिन वह निश्चित तौर पर एक बहुत उम्दा इंसान थे। जो कि इस देश की नवनिर्मित क्रूर आर्थिक नीतियों की वजह से व्यवस्था के नीचे दब कर दम तोड़ गए। काफी हद तक इसमें इस देश में व्यापारिक घरानों के लिए आम माध्यम वर्गीय सोच भी जिम्मेदार है । जिसके चलते हर राह चलता आदमी इन दिनों व्यापारी वर्ग से जलन रखता है और व्यापारिक वर्ग  को चोर कहने में भी कोई गुरेज नहीं करता।  प्रशासनिक और अधिकारी वर्ग तो व्यापारियों को चोर समझते ही है। सरकार भी बस भरे हुए लोगों को खाली करने हेतु व्यापारी वर्ग के पीछे पड़ गयी है। आये दिनों कर नीतियां सख्ती की पराकाष्ठा लांघती जा रही है। बिना यह सोचे समझे कि आखिर इस पूरी व्यवस्था का बोझा भी इसी मेहनत कश व्यावसायिक वर्ग पर ही है।* 


जय श्री कृष्ण

नरेश राघानी

प्रधान संपादक

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