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July 23, 2019
2147 # मधुकर कहिन
*प्रशासन की असीम अनुकंपा से आज सुबह हुए हनुमान जी के दर्शन
नरेश राघानी
आज सुबह की शुरुआत बड़ी अद्भुत थी। जब नींद खुली, तो बिटिया स्कूल के लिए तैयार हो रही थी। उसकी मां उसके पीछे दूध का गिलास लेकर घूम रही थी। बाहर से उन दोनों के बीच की बातें साफ सुनाई दे रही थी। बिटिया स्कूल चली गई, तो थोड़ी शांति हो गई। *मैं आंखें मलता बेडरूम से बाहर निकला ही था इस उम्मीद से की बाहर से अखबार उठा लाऊं- कि अचानक ... मेरी नजर ड्राइंग रूम के सोफे पर पड़ी । जिसके पास एक स्टूल पर एक जीता जागता लाल मूँह का बंदर बैठा था।
पहले तो मुझे मेरी आँखों पर यक़ीन नहीं हुआ। *मैंने सोचा हो सकता है नींद के मारे मुझे कुछ गलत दिखाई दे रहा है।* इससे पहले कि मैं कुछ और सोच पाता , उस बंदर न *दांत दिखा* कर मुझे धमकाना शुरू कर दिया। तब मुझे विश्वास हुआ कि नहीं वाकई *यह सही में बंदर है। जो मेरे ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया है , और मैं नींद में नहीं हूँ।* मैंने उसे डराने की कोशिश की तो वह प्रथम दृष्टया तो डरा ही नहीं। उल्टा मुझे दांत दिखाने लगा। मैंने आजू बाजू देखा तो घर में पानी साफ करने का वाइपर मेरे हाथ लगा। जिसे उठाकर मैंने बंदर को दिखाया । मेरे हाथ में वाइपर देखकर ही , बंदर वहां से भाग खड़ा हुआ। मैंने जाली का दरवाजा बंद कर दिया। जाली से बाहर देखा तो बंदर बाहर खड़ी मेरी कार की छत पर जाकर बैठ गया । और इस बार उसके हाथ में भी कुछ था । जो मैं निर्धारित नहीं कर पाया कि क्या था। *मुझे डर लगा कि वह गुस्से में मेरी कार का कांच न फोड़ दे । मैंने वाइपर फेंक कर उसे नमस्कार किया। तब जाकर वह शांत हुआ और वहां से रफा-दफा हो गया।* यह घटना कुल 2 मिनट की होगी, परंतु इस घटना ने मुझे सोचने में मजबूर कर दिया की *इस शहर में आवारा पशु पकड़ने की व्यवस्था का क्या हाल है ?* बंदर के चले जाने के बाद मैं जब बाहर बरामदे में आया तो, मेरे पड़ौसी यह दृश्य देख अपना पेट पकड़कर हंस रहे थे। मेरा पड़ौसी बोला - *नरेश भैया !!! आजकल पूरी पंचशील कॉलोनी में बंदरों का गैंग घूम रहा है ।* कल पास वाले वैष्णव साहब के पास भी इस गैंग ने धावा बोला था। सामने वाले अग्रवाल साहब ने तो अपने घर में, छोटा सा *बम का पैकेट* तक रख रखा है। जब भी उनके घर पर बंदर धावा बोलते हैं तो वह बंदरों के झुंड के बीच अगरबत्ती से वह बम जला कर फेंक देते हैं। और उससे सारे बंदर भाग जाते हैं। आप भी ऐसी कोई व्यवस्था कर लो। *मैंने सोचा - अब साला यह भी करें हम ?? और कोई काम नहीं बचा क्या ? जब पंचशील नगर जैसी पॉश कॉलोनी में बंदरों का ऐसा आतंक है। तो शहर के बीच तो पता नहीं क्या होता होगा ?*
ख़ैर .. जब मैं तैयार होकर वापस नाश्ते की टेबल पर आकर बैठा। तो मेरी धर्म पत्नी ने कहा - *कुछ नहीं रखा इन बातों में। छोड़ो अपन तो अपने दरवाजे बंद करना सीखो।* सुबह बिटिया स्कूल जाते वक्त दरवाजा खुला छोड़ गई होगी। इसी वजह से ही यह सब हो गया। *अपन तो यह मानो कि आज मंगलवार के रोज सुबह सुबह हनुमान जी साक्षात घर आकर दर्शन दे गए।* मेरी पत्नी का यह जवाब सुन कर मेरे मन को बहुत संतुष्टि मिली । *मैंने मोबाइल स्क्रीन पर नज़र डाली , तो वाकई मंगलवार का दिन था।* आंखें बंद करके पुनः उस बंदर को स्मरण करके मैंने हनुमान जी का ध्यान किया और प्रार्थना कर ली कि - *हे प्रभु !!! जल्द ही इस शहर के प्रशासन को ये अक्ल दे देना ताकि वह आम लोगों की परेशानी को देख कर लोकहित में इस समस्या का समाधान कर ले।*
जय श्री कृष्ण
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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