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October 22, 2018
शजर पर एक भी पत्ता नहीं है,
ये मौसम दोस्तों अच्छा नहीं है.
उन्हें है आईनों की क्या ज़रूरत,
वो जिनके पास में चेहरा नहीं है.
कई पैबंद दामन पे हैं मेरे,
ग़नीमत है कोई धब्बा नहीं है.
किनारों की तलब है अब भी उसको ,
अभी वो इश्क़ में डूबा नहीं है.
मुनासिब हो तो वापस लौट आओ,
कोई अब शहर में मेरा नहीं है.
दरो दीवार तक कहने लगे हैं,
कई दिन से तुम्हें देखा नहीं है.
नज़र के सामने ही अब रहो तुम,
मुझे अब दूर तक दिखता नहीं है.
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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