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October 15, 2018
कमरे में घुसते ही हाजी पंडित ने होंठों को गोल करते हुए ‘शूंअंअअ...’ की आवाज़ निकाली और कागज़ से बनाए एक हवाई जहाज़ को उड़ा दिया। हाजी की हर अजीब हरकत का कोई न कोई मतलब ज़रूर होता है लेकिन, वो तब तक समझ में नहीं आता जब तक हाजी ख़ुद न बता दें।
मैंने पूछा, ‘ये क्या है? बचपन में कौन से फाख़्ते उड़ा रखे थे कि इस उम्र में आकर कागज़ी जहाज़ उड़ाना पड़ रहा है?’ हाजी लगभग चिल्लाए, ‘कागज़ी जहाज़ नहीं गुरु! ये रफाल है रफाल!’ मैंने भी मज़े लिए, ‘अमां हाजी, तुम फ्रांस कब हो आए, जो ये आफ़त उठा लाए?’ हाजी आनंद में थे, ‘गया नहीं, शॉपिंग फेस्टिवल में होम डिलीवरी करवाई है, कैश ऑन डिलीवरी, अब न तो क़ीमत पूछना और न ही कैश कहां से आया जैसे टुच्चे सवाल करना।’
मैंने कहा, ‘कीमत जो भी हो हाजी पर इस हवाई जहाज़ की क्षमता पर कोई शक नहीं। अभी इस्तेमाल तक नहीं हुआ और भाई ने कई निपटा भी दिए!’ हाजी भी ऐसा ही कुछ कहना चाहते थे, ‘वही तो महाकवि! हवाई जहाज़ की मार देखो कि लोकल के ‘निलंबित मात्रा’ से लेकर वायुसेनाध्यक्ष तक और इंटरनेशनल में फ्रांस के पूर्व मॉडलपति-अधिपति तक, सब बयानों का पैराशूट लिए इसी से कूद रहे हैं।
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