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August 22, 2017
दर्द को आसरा नहीं देता,
ज़ख्म लेकिन नया नहीं देता.
जो वफ़ा मांग के तो ले जाता,
मुझको वापस वफ़ा नहीं देता.
डाल दी क़ायनात क़दमों में,
फिर भी वो तो दुआ नहीं देता.
तोड़ डाला हवाओं ने उसको,
जो शजर अब हवा नहीं देता.
मैं गुनाहों से दूर हूँ शायद ,
अब कोई भी सज़ा नहीं देता.
जो मेरे घर पे रोज़ आता है,
अपने घर का पता नहीं देता.
दर्द अब दर्द भी नहीं देते,
अब मज़ा भी मज़ा नहीं देता
तब तलक़ उसके दर पे जलता हूँ,
जब तलक़ वो बुझा नहीं देता.
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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