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June 10, 2017
रिपोर्ट-संभव है कि केंद्र सरकार इसे हार्वर्ड के अर्थशास्त्रियों का प्रलाप समझे। भारतीय जनता पार्टी में ये धारणा पहले से बनी हुई है कि ऐसे अर्थशास्त्रियों की बातों को ठुकराते हुए देश की जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हार्ड वर्क से प्रभावित है। मगर बेहतर होगा कि विश्व बैंक की भारत संबंधा ताजा रिपोर्ट पर सरकार गंभीरता से गौर करे। बैंक ने अनुमान लगाया है कि नोटबंदी का अनौपचारिक अर्थव्यवस्था- खासकर श्रमिकों पर व्यापक असर पड़ा। उसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था के इन क्षेत्रों के बारे में आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए असली असर का अंदाजा लगाना कठिन है। मगर यह जरूरी है कि नोटबंदी के सामाजिक प्रभाव का जायजा लिया जाए। वैसे नोटबंदी का औपचारिक अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ा। इससे देश की विकास दर घटी है। विश्व बैंक ने भी चालू एवं पूर्ववर्ती वित्त वर्ष के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि के अनुमान को घटा दिया है।
विश्व बैंक ने नोटबंदी के प्रभाव और निवेश चक्र धीमी गति से सुधार को देखते हुए ये कटौती की है। हालांकि उसका कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। इस साल जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद इसमें और मजबूती आएगी। बहरहाल, मौजूदा वित्त वर्ष (2017-18) के लिए विश्व बैंक ने भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.6 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। अब इसे 7.2 फीसदी कर दिया गया है। 2016-17 के लिए इसे 7 फीसदी से घटाकर 6.8 फीसदी किया गया है। भारत सरकार 2016-17 की जीडीपी वृद्धि का वास्तविक अनुमान बुधवार को जारी करेगी। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के अग्रिम अनुमान में 2016-17 के लिए वृद्धि दर 7.1 फीसदी रहने का अंदाजा लगाया गया था। विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि की रफ्तार ठोस बनी हुई है, क्योंकि महंगाई स्थिर है, निर्यात में हाल में कुछ तेजी आई है और कर उगाही बढ़ रही है। बहरहाल, सरकार के जीडीपी और औद्योगिक उत्पाद सूचकांक मापने के लिए आधार वर्ष बदल देने के बाद इन आंकड़ों से यह समझना मुश्किल हो गया है कि अर्थव्यवस्था की असली सूरत क्या है। पूंजी निर्माण, ऋण दर, निवेश और रोजगार के मोर्चों पर सूरत लगातार चिंताजनक है। इसी बीच नोटबंदी की मार पड़ी। विश्व बैंक की रिपोर्ट ने इस सच्चाई को माना है। यही भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा सच्चाई है।
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