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June 9, 2017
नई दिल्ली इस वक्त देश के दो बड़े राज्य- महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश किसान आंदोलन के दौर से गुजर रहे हैं। कर्नाटक, पंजाब और गुजरात में इसकी जमीन तैयार हो रही है। तमिलनाडु के किसान फिर से शक्ति प्रदर्शन के लिए ऊर्जा ले रहे हैं तो यूपी के किसान वेट ऐंड वॉच की स्थिति में हैं। इन सबकी पृष्ठभूमि में कर्जमाफी की मांग है। इस सच को समझते हुए भी कि कर्जमाफी किसानों की समस्याओं का स्थायी हल नहीं है, इसके बावजूद इस मुद्दे को अगर हवा मिल रही है तो यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर इसकी वजह क्या है।
सत्ता तक पहुंचने का शॉर्ट-कट
दरअसल राजनीतिक दलों को किसानों की कर्जमाफी का मुद्दा अब सत्ता तक पहुंचने के शॉर्ट-कट रास्ते के रूप में दिखने लगा है। इसी वजह से कर्जमाफी की आग में घी डालने का काम खुद राजनीतिक दलों की तरफ से किया जाता है। किसानों को भी इंस्टेंट रिलीफ में ज्यादा फायदा दिखता है। वे कर्ज अदायगी से बच जाते हैं। एक बड़े बैंक के शीर्ष अधिकारी के इस बयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि जो किसान कर्ज अदायगी की स्थिति में होते हैं, वे भी कर्ज अदा नहीं करते हैं, वे इस उम्मीद में होते हैं कि अगले चुनाव तक कोई न कोई राजनीतिक दल कर्ज माफ करने का वादा कर ही लेगा।
हाल में यूपी विधानसभा के चुनाव में बीजेपी के लिए कर्जमाफी का वादा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। खुद प्रधानमंत्री ने ऐलान किया था कि नवगठित सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में ही किसानों के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे। सत्ता में आने के बाद बीजेपी सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में कर्जमाफी के प्रस्ताव को मंजूरी दी। इसके बाद ही दूसरे बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों पर कर्ज माफी का दबाव बढ़ा। उधर कर्नाटक, जहां कांग्रेस पार्टी सत्ता में है, वहां बीजेपी सिद्धारमैया सरकार पर किसानों की कर्जमाफी के लिए दबाव बना रही है।कर्नाटक में अगले साल चुनाव होने हैं। सिद्धारमैया अपने बचाव में कर्जमाफी को केंद्र के पाले में डालने में जुटे हैं, उनका कहना है कि राष्ट्रीय बैंकों का कर्ज केवल केंद्र सरकार ही माफ कर सकती है लेकिन गुजरात में जहां कांग्रेस विपक्ष में है और इसी साल के आखिर में वहां विधानसभा के चुनाव होने हैं, पार्टी ने कर्जमाफी का वादा कर बड़ा दांव चला है। गुजरात कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी ने कहा है कि गुजरात में उनकी सरकार आते ही किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा।
उधर पंजाब में कर्जमाफी के वादे साथ सत्ता में पहुंची कांग्रेस को उसके वादे की याद दिलाने को आम आदमी पार्टी मैदान में उतर पड़ी है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव तक अगर यही सिलसिला चलता रहा तो करीब 2,57,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ करना पड़ेगा।
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