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December 4, 2025
ब्राज़ील और अजमेर शरीफ़: ज़ियारत, समाअ और चिश्तिया रूह की रात लेख: फ़रीद महाराज
पिछली रात हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती (रहमतुल्लाह अलैह) के मुक़द्दस आस्ताने पर ब्राज़ील से आए हुए १०८ ज़ाएरिन का रूह परवर इज्तिमा हुआ। इस क़ाफ़िले की क़ियादत रूहानी ज़ौक़ रखने वाले मार्सेलो अर्बन कर रहे थे, जो सूफ़ी हल्क़ों में अब्दुल रहीम अल हकीम के नाम से जाने जाते हैं। इस वफ़्द में मर्द, ख़वातीन और बच्चे शामिल थे, जो सब के सब ग़रीब नवाज़ (रह.) की आलमी तालीमात-ए-मोहब्बत, ख़िदमत और इनक़िसारी से मुतास्सिर होकर यहाँ हाज़िर हुए।
इस सआदतमंद मौक़े पर मुझे, सैयद फ़रीद महाराज को अपने बरादरान शरीक महाराज, ज़हूर मियाँ महाराज और अपने भतीजे आज़म महाराज के तआवुन के साथ इन मेहमानान-ए-ग़रामी की मेज़बानी का शर्फ़ हासिल हुआ। यह मंज़र इस हक़ीक़त को ताज़ा करता है कि दरगाह शरीफ़ महज़ एक तारीखी मक़ाम नहीं बल्कि एक ज़िन्दा रूहानी चश्मा है जो दुनिया के हर गोशे से दिलों को अपनी तरफ़ खींचता है।
वफ़्द में मुतमय्यिज़ पेशावर अफ़राद भी शामिल थे, जिनमें एक जोड़ा सर्जन्स का था — एक दिमाग़ के माहिर और दूसरा दिल के माहिर — जिनके शिफ़ा बख़्श हाथ अब ख़्वाजा बाबा (रह.) की तालीमात की रूहानी शिफ़ाबख़्शी से भी मुनव्वर हो गए। उनकी आज़ी और अकीदत निहायत मुतास्सिर कुन थी।
ज़ियारत के बाद यह क़ाफ़िला एक पुरकैफ़ महफ़िल-ए-समाअ में शरीक हुआ, जहाँ क़व्वाली की सदाएँ दिलों को झंझोड़ती रहीं और आँखों को अश्कबार कर गईं। इस रूहानी सफ़र का इख़्तिताम एक रिवायती दस्तारबंदी से हुआ, जो चिश्तिया सिलसिले से वाबस्तगी और रूहानी इज़्ज़त व एहतराम की अलामत है।
गुफ़्तगू के दौरान हमने चिश्तिया मिशन के मौजूदा समाजी रुजहानात पर असरात पर तबादला-ए-ख़याल किया — कि किस तरह इसकी तालीमात-ए-शमूलियत, शफ़क़त और बातिनी तज़किया आज की दुनिया की तन्हाई और इन्तिशार का लाज़वाल इलाज पेश करती हैं। ब्राज़ीली वफ़्द ने इन क़द्रों से गहरी वाबस्तगी का इज़हार किया और कई अफ़राद ने इस नूर को अपनी बिरादरियों तक ले जाने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की।
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