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अजमेर न्यूज़: जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग की नई बिल्डिंग के टेरेस पर लगी आग में फंसे मासूम बच्चे का रेस्क्यू,

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November 25, 2025

जयपुर चिकित्सा निदेशालय से आई टीम ने मॉक ड्रिल के माध्यम से किया रेस्क्यू ऑपरेशन का निरीक्षण

जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग की नई बिल्डिंग के टेरेस पर लगी आग में फंसे मासूम बच्चे का रेस्क्यू,

जयपुर चिकित्सा निदेशालय से आई टीम ने मॉक ड्रिल के माध्यम से किया रेस्क्यू ऑपरेशन का निरीक्षण


निदेशालय चिकित्सा विभाग जयपुर से अजमेर पहुंची टीम ने अजमेर संभाग के सबसे बड़े जवाहरलाल नेहरू अस्पताल की व्यवस्थाओं का मॉक ड्रिल के माध्यम से औचक निरीक्षण किया। मंगलवार को अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग की नई बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर फंसे बच्चे को एयरलिफ्ट कर रेस्क्यू किया गया। रेस्क्यू में 20 से 25 मिनट का समय लगा। निरीक्षण करने आई टीम  को इस ड्रिल में कई प्रकार की खामियां मिली तो अधिकारियों ने अस्पताल प्रशासन से चर्चा कर बेहतर व्यवस्था के निर्देश प्रदान किए। मंगलवार को जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग की नई बिल्डिंग के टेरेस पर आग लगने से एक मासूम बच्चा फंस गया। मामले की सूचना मिलते ही अस्पताल प्रशासन हरकत में आया अग्निशमन विभाग की टीम भी तत्काल मौके पर पहुंच गई। अग्निशमन विभाग की एयरलिफ्ट करने वाली गाड़ी ने सुबह 11:36 पर
एयरलिफ्ट का प्रोसेस शुरू हुआ। मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल डॉक्टर अनिल सामरिया, अस्पताल अधीक्षक डॉक्टर अरविंद खरे और उपाध्यक्ष डॉक्टर अमित यादव सहित अन्य विभागीय चिकित्सक और अग्निशमन विभाग के अधिकारी भी मौके पर मौजूद रहे।  क्रेन की ट्रॉली में ज्यादा वजन होने के कारण एक डॉक्टर को वापस नीचे उतार दिया गया। बाद में डॉक्टर अग्निशमन विभाग की टीम के साथ करीब 11:50 पर टेरेस पर पहुंच गए। यहां आग पर काबू कर बच्चे का सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया गया।  एअरलिफ्ट करने वाली टीम 12 बजे बच्चे को लेकर  नीचे पहुंची और उसे तुरंत इलाज के लिए इमर्जेंसी वार्ड में भेजा गया। इस पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन में करीब 20 से 25 मिनट का समय लगा। यह पूरा प्रोसेस एक मॉकड्रिल था। जयपुर निदेशालय चिकित्सा विभाग टीम के निरीक्षण के लिए इस मॉकड्रिल को अंजाम दिया गया।

कंसल्टेंसी सहायक निदेशक डॉक्टर नेहा शर्मा ने बताया कि अस्पताल प्रशासन को स्टाफ को पहले ब्रीफ करने की जरूरत थी ऊपर अगर कम लोग जाते तो वह ज्यादा बेहतर था। स्टाफ अगर साथ में जाता तो उनकी भी ट्रेनिंग हो सकती थी। टाइम भी ज्यादा लगा था। इसे लेकर अगली बार के लिए निर्देश दिए गए कि पहले स्टाफ को ब्रीफ किया जाए और उसके बाद ही मॉकड्रिल की जाए साथ ही ग्रुप में स्टाफ को भी मॉकड्रिल में शामिल किया जाए। इससे कुछ स्टाफ बाहर रहे और कुछ अपना काम करें। इससे मरीजों को भी कोई समस्या नहीं हो। मंथली ट्रेनिंग होना जरूरी है।


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