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October 10, 2025
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण संवैधानिक सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जेल में बंद कैदियों के वोटिंग अधिकार पर जवाब मांगा है। यह मामला उन करीब 4.5 लाख अंडरट्रायल कैदियों से जुड़ा है, जो जेलों में बंद हैं लेकिन अभी दोषी साबित नहीं हुए।
क्या है मामला?
यह जनहित याचिका (PIL) पंजाब के पटियाला निवासी सुनीता शर्मा ने दायर की है। इसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People’s Act) 1951 की धारा 62(5) को चुनौती दी गई है। इस धारा के तहत जेल में बंद कोई भी व्यक्ति, चाहे वह सजा काट रहा हो या ट्रायल का इंतजार कर रहा हो, चुनाव में वोट नहीं दे सकता।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 326 (वयस्क मताधिकार) का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता की दलील
अंडरट्रायल कैदी कानूनन निर्दोष माने जाते हैं, जब तक कोर्ट दोष सिद्ध न करे।
ऐसे में उन्हें वोटिंग से वंचित करना अन्याय है।
खासकर वे कैदी, जिन पर कोई चुनावी अपराध या भ्रष्टाचार का आरोप भी नहीं है।
याचिका में मांग की गई है कि जेलों में वोटिंग बूथ बनाए जाएं या डाक मतपत्र (Postal Ballot) की व्यवस्था की जाए।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अगुवाई वाली बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है।
वकील प्रशांत भूषण ने याचिका का पक्ष रखा और कहा कि यह पूर्ण प्रतिबंध संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
कोर्ट ने इसे गंभीर मामला बताते हुए केंद्र और चुनाव आयोग से जल्द जवाब मांगा है और अगली सुनवाई की तारीख तय कर दी है।
भारत की जेलों में कुल कैदियों का एक बड़ा हिस्सा अंडरट्रायल का है। अनुमान के मुताबिक करीब 4.5 लाख कैदी ऐसे हैं, जो दोषी साबित नहीं हुए हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में आता है तो यह भारतीय लोकतंत्र में मताधिकार को और मजबूत करने वाला ऐतिहासिक कदम होगा।
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