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August 1, 2025
मदस विवि का 38 वां स्थापना दिवस समारोह
नई शिक्षा नीति श्रेष्ठ राष्ट्र व सुयोग्य नागरिक बनाने की मजबूत कड़ी- श्री देवनानी
महर्षि दयानंद सरस्वती भारतीय ज्ञान परम्परा के ध्वजवाहक- श्री राठौड़
गुरू का भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च स्थान-श्री रावत
अजमेर, एक अगस्त। विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊंचाइयां तय कर रहा है। नई शिक्षा नीति भारतीयता, सनातन संस्कृति और राष्ट्र गौरव की अनुभूति के साथ विद्यार्थी को आगे बढ़ा रही है। यह श्रेष्ठ राष्ट्र व सुयोग्य नागरिक बनाने की मजबूत कड़ी है।
विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी ने शुक्रवार को महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के 37 वें स्थापना दिवस समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति देश की दशा व दिशा को बदलने वाली है। यह श्रेष्ठ राष्ट्र व सुयोग्य नागरिक बनाने की अहम कड़ी है। अब विश्वविद्यालयों को भी बदलना होगा। उन्हें प्रचलित अवधारणाओं के साथ ही कुछ नए उपाय भी करने होंगे ताकि विद्यार्थी कक्षा में आए। उसे शैक्षिक के साथ ही सह शैक्षिक गतिविधियां भी मिलें। शिक्षक विद्यार्थियों को गढ़ें। उनके घर जाएं, उन्हें बेहतर बनाने के लिए सर्वस्व लगा दें और देखे कि कैसे सारा माहौल बदल जाएगा। शिक्षक विद्यार्थियों से निरंतर संवाद करें और उनकी समस्याओं के समाधान में भागीदार बनें। हम राष्ट्र निर्माण का संकल्प लें।
श्री देवनानी ने कहा कि विश्वविद्यालय में केवल पुस्तक वाचन ना हो बल्कि शोध व तार्किक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिले। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय भी तक्षशिला व नालंदा की तरह विश्व में अपनी पहचान बना सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरू का विशेष महत्व है। गुरूकुल और भारतीय ज्ञान संस्कृति विपुल एवं विशुद्ध है। सबसे बड़ी आवश्यकता सनातन संस्कृति को मजबूत करने की है। सनातन संस्कृति रहेगी तो ही हम रहेंगे। संस्कृति से ही जीवन जीने की शैली, हमारा विचार, हमारा सोच, हमारा लक्ष्य, हमारा उद्देश्य परिभाषित होता है। उन्होंने विश्वविद्यालय स्थापना दिवस पर बधाई देते हुए कुलगुरू को शिक्षकों एवं स्टाफ की कमी को लेकर सकारात्मक कार्यवाही करने के लिए विश्वास दिलाया।
शिक्षाविद् हनुमान सिंह राठौड़ ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि विश्वविद्यालय का नामकरण जिन महापुरूष के नाम पर किया गया है वे महर्षि दयानंद सरस्वती महान पुरुष, शिक्षाविद, समाज सुधारक थे। उनके दर्शन का सम्मान न केवल भारत में बल्कि विश्व में भी किया जाता है। उन्होंने कुरीतियों, जातिवाद, अंधविश्वास, ऊंच-नीच, छुआछूत जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किए। स्वामी दयानन्द सरस्वती भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रणेता रहे। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अंग्रेजी औपनिवेशिक शिक्षा के विकल्प के रूप में भारतीय ज्ञान प्रणाली को स्थापित करने का बीज बोया। डीएवी आंदोलन (दयानंद एंग्लो-वैदिक) यह एक मध्यम मार्ग था, जहाँ अंग्रेजी माध्यम के बावजूद भारतीय संस्कृति की शिक्षा प्रदान की जा सकती थी। अंग्रेजी माध्यम में भी हम अपनी भारतीय संस्कृति को पढ़ा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वर्णित भारतीय ज्ञान परम्परा को पुनः स्थापित करने के बीज सर्वप्रथम स्वामी दयानंद सरस्वती ने ही बोए थे। विद्या प्राप्त करना तप है। भारतीय परंपरा में मेधा बुद्धि केवल बुद्धिमान होने तक सीमित नहीं है, बल्कि समस्त संसार के हित की कामना करने के लिए तप करना सनातन संस्कृति है। मनोचिकित्सकों ने आज सिद्ध किया है कि बच्चे को शिक्षा उसी भाषा में मिलनी चाहिए जिसमें वह स्वप्न देखता है उन्होंने वर्तमान में अंग्रेजी को कैरियर और बड़े पैकेज से जोड़ने की मानसिकता पर चिंता व्यक्त की, जिससे मातृभाषा का महत्व कम होता जा रहा है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि वे विश्वविद्यालय के विकास के लिए योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आज विश्वविद्यालय के समक्ष अतिक्रमण, स्टाफ व शिक्षकों की कमी सहित कई चुनौतियाँ है, इनका समाधान करने के लिए सरकार के स्तर पर पूर्ण प्रयास किया जाएगा। उन्होंने बताया कि वे इसी विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं और इसे श्रेष्ठता के स्तर पर आगे बढ़ाना उनका सौभाग्य होगा।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने कहा कि स्थापना दिवस आत्मवलोकन का दिवस होता है कि हमने 38 वर्षों में क्या किया, क्या शेष रह गया और क्या करना बाकी है और उसका लेखा-जोखा तैयार करके आगे की यात्रा का निरूपण करना होता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज हमें यह तय करना है कि हमारा विश्वविद्यालय राष्ट्रीय स्तर का नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर का शिक्षण संस्थान किस तरह से बने।
कुलगुरु ने कहा कि शिक्षा केवल जानकारी का संचरण नहीं होनी चाहिए, बल्कि बोध पर केंद्रित होनी चाहिए। उन्होंन कहा कि शिक्षकों को छात्रों को न केवल जवाब देना सिखाना चाहिए, बल्कि प्रश्न करने की कला भी सिखानी चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप, वे अन-लर्न करने की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कुलगुरू ने कहा कि पुरानी, अनुत्पादक धारणाओं और विचारों को छोड़कर ही भारत को विश्व गुरु बनया जा सकता है। विश्वविद्यालय का प्रमुख लक्ष्य भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, हर पाठ्यक्रम में पहली इकाई भारतीय ज्ञान परंपरा की होगी, और अनुसंधान में भी सैद्धांतिक ढांचे में भारतीय परंपरा को शामिल किया जाएगा। इस अवसर पर राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर के पूर्व कुलपति प्रो. बी.आर. छीपा ने भी उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती को मनीषी तथा भारतीय संस्कृति के पुरोधा के रूप में जाना जाता हैं। अतः स्वाभाविक है कि उनका साहित्य, संस्कार और शिक्षा हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी।
धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव प्रिया भार्गव ने किया तथा संचालन प्रो. अरविंद पारीक ने किया। इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो. लोकेश शेखावत एवं प्रो. के सी शर्मा, प्रबंध बोर्ड सदस्य प्रो. अनिल दाधीच एवं प्रो. ऋतु माथुर, अधिष्ठाता शिक्षा संकाय प्रो. सुचेता प्रकाश तथा विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रो. सुभाष चन्द्र, प्रो. सुब्रतो दत्ता, प्रो. रीटा मेहरा, प्रो. शिव प्रसाद, यूजीसी दयानन्द चेयर प्रो. नरेश कुमार धीमान, दयानन्द महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. लक्ष्मीकांत शर्मा, डॉ. आशीष पारीक, प्रो. शिवदयाल सिंह, परीक्षा नियंत्रक डॉ. सुनील कुमार टेलर, वित्त नियंत्रक नेहा शर्मा, डॉ. सूरजमल राव, डॉ. तपेश्वर, प्रो. आशीष भटनागर, प्रो. प्रवीण माथुर, डॉ. राजूलाल शर्मा, डॉ. लारा शर्मा, डॉ. ए. जयन्ती देवी सहित बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के कर्मचारी, विद्यार्थी एवं अजमेर नगर से पधारे गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
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