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April 18, 2021
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा
जनता मुँह पर मास्क लगा रही है प्रशासन आँखों पर_
शहर को मुनाफ़ा खोर जम कर लूटने पर हुए संगठित
सम्पूर्ण लॉक डाउन से पहले आतंक का दौर शुरू: मॉल्स पर कुम्भ जैसा माहौल_
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सपनों में भी लोग मास्क लगाकर घूम रहे हैं ।इसके बाद और हम क्या चाहते हैं ऐसा देखने के बाद मुझे लग गया है कि अब वही लोग मौत से बच पाएंगे जो अपने घरों में स्वह लॉकडाउन लगा कर बैठ गए हैं।
कितना आसान है ना यह कह देना कि घर में बैठकर ही जिंदा रहा जा सकता है
सरकारों ने यह कहकर कि घर में क़ैद रहो अपनी सारी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया है। सरकारें ये नहीं सोच रहीं कि घर में बैठ जाने के बाद जीने के लिए घर तक ज़रूरी चीजें कौन उपलब्ध कराएगा बिजली, पानी, गैस के बिल क्या सरकार माफ करने वाली है फ्री राशन -पानी क्या सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जाएंगे बैंक की किस्तें जो हर महीने दरवाज़े पर आ खड़ी होती हैं क्या सरकारें माफ कर देंगी क्या रोज़मर्रा की जो दवाइयां लोग खरीदते हैं वे उन्हें समय पर पहुंचा दी जाएंगी
घर में बैठकर आप लोगों को कोरोना से तो बचा लोगे मगर उस क़र्ज़ से कैसे बचाओगे जो कोरोना काल में लोगों के सर पर चढ़ेगा और जिसे ना चुकाने की स्थिति में लोगों को आत्महत्या करनी पड़ेगी
------फिर घर में बैठकर साधन संपन्न लोग तो कोरोना की गिरफ्त में आने से बच जाएंगे मगर उन सर्वहारा वर्ग के लोगों का क्या होगा जो रोज कुआं खोदकर पानी पीते हैं खुली मजदूरी करके शाम को अपने घर की रोटी का इंतजाम करते हैं
पिछले साल सम्पूर्ण लॉकडाउन में भामाशाहों ने सरकारी दायित्वों का मोर्चा अपने सर पर ले लिया था। मजदूरों और मुफ़लिसों के लिए शिविर लगा दिए गए थे ,जिनमें दयालु लोग हर तरह की सहायता पहुंचा रहे थे। क्या सरकार सोचती है कि इस बार पूर्ण लॉकडाउन लगाने पर फिर से भामाशाह घर से बाहर निकलेंगे फिर से रसोईयां चलाकर पैकेट बांटे जाएंगे
मोदी जी या गहलोत जी यदि इस बात का ऐलान कर दें तो पूर्ण लॉकडाउन तुरंत लगा दिया जाए!! लोग अपने घरों में क़ैद होकर कोरोना की चेन तोड़ने को तैयार हो जाएंगे। यदि नहीं तो वीकेंड लॉकडाउन जैसे प्रयोग भी पर्याप्त हैं।
यहां गहलोत जी और मोदी जी को एक बात और बता दूं कि लॉकडाउन अभी लगा नहीं है मगर लोगों ने मारे डर के ही दो चार महीनों का घरेलू सामान खरीदना शुरू कर दिया है.। किरानों की दुकानों पर ही नहीं मेडिकल स्टोर्स पर भी भीड़ उमड़ी हुई है ।
बिग बाजार, d-mart और रिलायंस के महा स्टोर्स जो कल तक खाली पड़े थे ,वहां आज कुंभ के मेले जैसे हालात बन गए हैं ।लंबी-लंबी कतारों में लोग ऐसे खड़े हैं जैसे फ्री में सामान बांटा जा रहा हो।
लोगों की मजबूरी और भय का फायदा उठाकर स्वार्थी व्यापारियों ने मुनाफाखोरी की सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। रोज़मर्रा के सामानों में 10 से 15% तक के रेट बढ़ा दिए गए हैं। सब्जियों के भाव सातवें आसमान पर हैं ।शहर में सिर्फ शराब के दाम नहीं बढ़े हैं लेकिन शहर के दारु बाज़ लॉकडाउन के डर से दारू का इंतजाम वह भी कई महीनों का करने के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं।इंसानियत को हर जगह ताक पर रख दिया गया है ।बीड़ी ,सिगरेट और गुटका तक के दामों में भारी मुनाफा कमाया जा रहा है ।और तो और चतुर व्यापारी इनका भारी स्टॉक जमा कर रहे हैं ताकि पूर्ण लॉक डाउन के समय मनमाना पैसा कमाया जा सके
मानवता की इस परीक्षा घड़ी में दाल ,चावल ,चाय- पत्ती ,शक्कर ,तेल मसाले सबके साथ साबुन, सर्फ तक में व्यापारी बड़ा मार्ज़ीन हथियाने में जुट गए हैं।
ऐसी आपाधापी के बीच जिला प्रशासन क्या कर रहा है मास्क लगवाने के लिए सख्ती बरतना ज़रूरी है मगर प्रशासन यदि अपनी आंखों पर भी मास्क लगा लेगा तो इन मुनाफा खोर कमीनों को कौन संभालेगा
लॉक डाउन लगाने की सख़्ती पर मैं कोई सवाल नहीं उठाना चाहता ।किसी को उठाना भी नहीं चाहिए।बेहद ज़रूरी है ये। मगर जनता के लिए सिर्फ लॉकडाउन ही ज़रूरी नहीं और भी बहुत कुछ जरूरी है।
यहां एक ज़रूरी बात का मैं और जिक्र करना चाहूंगा। ऐसे कर्मचारी जो मामूली वेतन लेकर कोरोना की धधकती आग में अपनी सेवाएं दे रहे हैं उनके बारे में कौन सोचेगा
सिर्फ मास्क पहनाकर (वह भी सरकारी नहीं ख़ुद का) ऐसे लोग संक्रमित क्षेत्र में जाकर सेवाएं दे रहे हैं। उनकी सुरक्षा का क्या होगा निजी शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों और अन्य स्टाफ को निकाला जा रहा है ।उनके चूल्हे बंद होंगे यह तय है ।ऐसे लोगों का क्या होगा
इधर सरकारी स्कूलों के अध्यापक -अध्यापिकाओं को पूरा वेतन दिया जा रहा है। स्कूल बंद हैं। इसलिए उन्हें हर कहीं जोते जा सकने का अधिकार सरकार ने अपने हाथों में ले लिया है। उनसे जिस तरह का काम लिया जा रहा है वह एक तरह से ब्लैक मेलिंग ही है। या तो जो कहा जाए वो करो वरना नौकरी से हाथ धो लो
मेरा मानना है कि इतनी अमानवीयता शिक्षकों के साथ बरतने की जगह यदि सरकार उन्हें सुरक्षा के साधन उपलब्ध कराने में दम लगाए तो वह बेहतर सेवाएं दे सकते हैं। उनकी जान को जोखिम में डालकर नौकरी करवाना और लोगों को घरों में कैद रखने की सलाह देना दोनों ही दुखदाई हैं।
अभी तो वीकेंड लॉकडॉउन शुरू ही हुआ है। जब संपूर्ण लॉकडाउन की स्थिति बनेगी तो हमारा सामाजिक ताना-बाना पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगा ।सरकार है कि अभी यह नहीं समझ रही।
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