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March 30, 2021
तीनों उपचुनावों में कांग्रेस और भाजपा को भीतरघाती ले डूबने के मूड़ में
वसुंधरा और सचिन का बेताल पूनिया और गहलोत के कंधों पर सवार
गुर्जरों का हारावल दस्ता गहलोत को ठिकाने लगाने के लिए तैनात
पलाड़ा का पलड़ा राजसमंद के परिणामों का वज़न नापेगा
सचिन और वसुंधरा के पास खोने को तो कुछ नहीं पाने को बहुत कुछ:, गहलोत -पूनिया के पास खोने को सब कुछ
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
राजस्थान के तीनों उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस भीतर घात का दंश भुगत रही है। दोनों ही पार्टी के दिग्गज भीतरघात के लिए सक्रिय हो चुके हैं। दो सप्ताह पहले जब दोनों ही पार्टियों की ओर से अधिकृत प्रत्याशी घोषित नहीं किए गए थे तभी पार्टी के नाराज़ नेताओं ने अपने-अपने हरावल दस्ते हराने के लिए तीनों उप चुनावों में तैनात कर दिए थे।
कांग्रेस के प्रभावी नेता सचिन पायलट हाथी के दांत की तरह दिखाने को तो कांग्रेस के साथ हैं मगर उनके मन में अशोक गहलोत के प्रति संवेदनाओं की सच्चाई लगभग झूठी है।
यही हाल भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है। वे किसी भी क़ीमत में अगला मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं ।इसलिए अपना पूरा प्रभाव भाजपा के लिए सुरक्षित नहीं रख रहीं। दोनोँ पार्टियों का बुरा हाल है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पता है कि तीनों विधानसभा उपचुनावों के लिए गुर्जर समाज के अलग-अलग हरावल दस्ते भेज दिए गए हैं।
इनमें से कुछ जिम्मेदार नेता मेरे संपर्क में भी हैं। वे निरंतर रिपोर्ट दे रहे हैं कि गुर्जर वोटों को कांग्रेस से छिटकाया जा रहा है ।भाजपा यद्यपि इन गुर्जर नेताओं के सीधे संपर्क में नहीं है , लेकिन वे इस बात से खुश हैं कि उनके उम्मीदवारों को कोंग्रेसी गुर्जर वोटों का अतिरिक्त लाभ मिलने जा रहा है।
दोनों ही पार्टियों ने इस बार परिवारवाद की अमरबेल पर लटककर वैतरणी पार करने की रणनीति बनाई है। तीनों उपचुनावों में दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने जाज़म उठाने वाले कार्यकर्ताओं और जड़ों से जुड़े समर्पित नेताओं के साथ विश्वासघात किया है। चुनाव क्षेत्र सहाड़ा ,सुजानगढ़ और राजसमंद में जिन लोगों ने स्वर्गीय विधायकों को जिताने के लिए पिछले चुनावों में जी जान लगा दी थी वे सभी निराशा के दौर से गुज़र रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के हाईकमान की अनदेखी से नाराज़ होकर वे पूरी तरह निष्क्रिय हो चुके हैं ।पार्टी के साथ रहना उनकी मजबूरी है लेकिन उनका हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाना भी एक तरह से भीतर घात ही है।
मुख्यमंत्री अच्छी तरह समझ रहे हैं कि उनके साथ पार्टी के कुछ दिग्गज नेता मिलकर क्या खेल खेल रहे हैं यही वजह है कि उनका पूरा ध्यान गुर्जर समाज को अपनी पार्टी से जोड़े रखने में लगा हुआ है। इसीलिए वे गुर्जर समाज के ऐसे नेता जो सचिन पायलट से छिटके हुए हैं को अपने साथ जोड़ रहे हैं।
विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी जो बा- हैसियत अध्यक्ष पद के संवैधानिक होने के कारण सक्रिय राजनीति में तो भाग नहीं ले सकते मगर उन्हें भी अंदरूनी तौर पर सक्रिय कर दिया गया है .सहाड़ा और राजसमंद विधानसभा क्षेत्र सी पी जोशी के प्रभाव क्षेत्र में माना जाता है, अतः वे भीतरी तौर पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कांग्रेस के लिए कर रहे हैं।
डॉक्टर रघु शर्मा को चुनाव प्रभारी बनाया गया है इसलिए वे भी गहलोत की टीम के गोलकीपर माने जा रहे हैं।गोल बचाना उनकी जिम्मेदारी है।
इन दोनों क्षेत्रों में भाजपा के गुलाबचंद कटारिया ने भी अपनी जान झोंक दी है।सी पी जोशी के प्रभाव को ठिकाने लगाने के लिए कटारिया जी ने अपने समर्थकों के कई दस्ते चुनाव प्रचार में लगा दिए हैं।
भीलवाड़ा, राजसमंद और चूरु जिले में अलग-अलग जातियों के नेताओं का प्रभाव है। राजसमंद मेवाड़ में आता है तो सुजानगढ़ शेखावाटी में। भीलवाड़ा जिले से मंत्री होने के नाते खेल मंत्री अशोक चांदना को साफ कहा गया है कि उनका मंत्री होना तभी मुकम्मल माना जाएगा जब सहाड़ा और राजसमंद से कांग्रेस जीतेगी।
राजसमंद से भाजपा की सांसद दीया कुमारी को पूरे दमखम के साथ तैनात कर दिया गया है।
इधर वसुंधरा राजे के इशारे पर कुछ प्रभावशाली नेता राजसमंद में प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। अजमेर के लोकप्रिय नेता भंवर सिंह पलाड़ा ने जिस तरह अपनी दावेदारी प्रस्तुत की है और वास्तव में यदि वे चुनाव लड़ते हैं तो सांसद दीया कुमारी के वर्चस्व को ख़तरा हो जाएगा। राजनीतिक पंडित मानकर चल रहे हैं पलाड़ा वसुंधरा टीम के सशक्त नेताओं में से एक हैं और वे निर्दलीय होने के बावजूद पूरे राज्य में अपनी लोकप्रियता का अलग अंदाज़ रखते हैं। राजसमंद में उनका चुनावी उम्मीदवार बने रहना भाजपा के लिए आग से खेलने जैसा होगा।
पलाड़ा क्योंकि भाजपा में नहीं हैं अतः उन्हें भाजपा के रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। हां, यह ज़रूर हो सकता है कि भाजपा के दिग्गज नेता दिल मसोस कर उन्हें वापस पार्टी में शामिल कर लें। ऐसा करके ही उनके प्रकोप से राजसमंद की सीट को भाजपा अपने खाते में ला सकती है।
भीलवाड़ा के सांसद सुभाष बहेड़िया से भी उनकी पार्टी उम्मीद लगाए बैठी है मगर मुझे नहीं लगता कि वे अपनी लोकप्रियता का किसी भी तरह का लाभ पार्टी के उम्मीदवारों को पहुंचा सकेंगे। पार्टी में उनका विरोध अभी तो पार्टी को नुकसान ही पहुंचा सकता है।
एक और बात मैं कहना चाहूंगा। कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद डोटासरा के नेतृत्व में यह तीनों उपचुनाव जिस तरह अशोक गहलोत के लिए अग्निपरीक्षा जैसे हैं वैसे ही उनके लिए भी किसी परीक्षा से कम नहीं।
सचिन पायलट डोटासरा से पहले अध्यक्ष पद पर थे। तब पार्टी को विधानसभा में अद्भुत परिणाम मिले थे। उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस को सत्ता में काबिज़ होने का चमत्कार देखने को मिला । उनके हटाए जाने के बाद अब डोटासरा की इज्जत दांव पर लग गई है ।यदि तीनों सीटों पर कांग्रेस वापस नहीं आ पाई तो डोटासरा और गहलोत के तोते उड़ जाएंगे।
सचिन पायलट इस सच्चाई से पूरी तरह वाकिफ हैं और वे शायद इसी बात का इंतजार भी कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने इसके लिए पुख्ता व्यवस्था न की हो, ऐसा हो नहीं सकता।
दूसरी और भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनिया के कार्यकाल के लिए भी यह चुनाव पहला है ।वसुंधरा राजे के बराबर बने डर को साथ लेकर वे तीनों चुनाव जीतना चाहेंगे। चुनाव में भाजपा की जीत से उनका भविष्य जुड़ा हुआ है।
वसुंधरा राजे और सचिन पायलट के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं । पाने के लिए बहुत कुछ है। इसी प्रकार गहलोत और डोटासरा के पास पाने खोने के लिए बहुत कुछ है।ऐसे में दोनों ही पार्टियां दांव पर लगी हुई है।
मेरा निजी तौर पर आकलन है कि भितरघात के चलते कांग्रेस को शायद ही तीनों में से कोई स्थान पर जीत मिले। तीनों उपचुनावों में फ़िलहाल भाजपा के उम्मीदवार ही उम्मीद के उजाले में चमकते नज़र आ रहे हैं।
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