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January 5, 2021
कौन सच्चा है मुझे पूछना भी आता है,
किसी भी झूठ के पर नोचना भी आता है।
नहीं हूँ कोई समन्दर कि सूखने से डरूँ,
मैं हूँ तालाब मुझे सूखना भी आता है।
मुझे कभी भी मसीहाई रास आई नहीं,
मेरे हुनर को मुझे बाँटना भी आता है।
चमन का फूल हूँ वाकिफ़ हूँ अपनी साँसों से,
हर एक सुबह मुझे टूटना भी आता है।
लक़ीर हूँ तो हथेली है क़ैद में मेरी,
फ़क़ीर हूँ तो मुझे माँगना भी आता है।
अलग है बात कभी बोलना नहीं सीखा,
बयाबाँ हूँ तो मुझे चीख़ना भी आता है।
बिछड़ के तुमसे यही राज़ इक खुला मुझपे,
पता चला कि मुझे सोचना भी आता है।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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