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November 23, 2020
ऑनलाइन दुनिया में अब वर्चुअल इंसान भी मिलने लगे हैं। चेहरा पहचानने की तकनीकी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक से कंपनियां अब हजार डॉलर में चेहरे बनाकर बेच रही हैं। यह चेहरे किसी वास्तविक व्यक्ति के नहीं हैं लेकिन तस्वीरें सामान्य व्यक्ति जैसी हैं ऐसा चेहरा जो दुनिया में कहीं और नहीं।
इन चेहरों को जेनरेटेड फोटोज और दिसपर्सनडजनॉटएग्जिस्ट डॉट कॉम जैसी कंपनियां वीडियो गेम निर्माताओं से लेकर वेबसाइट को मुहैया करवा रही हैं। कंपनियां इन्हें 3 डॉलर से 2000 डॉलर यानी ढाई सौ से लेकर 75000 रुपए में हजार चेहरे तक की दर पर बेच रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि निकट भविष्य में इन चेहरों से भरी तस्वीरें इंटरनेट पर काफी संख्या में पहुंच जाएंगे।
एक समय ऐसा आएगा कि ऑनलाइन व्यक्ति असली है या फर्जी बताना मुश्किल हो जाएगा। भ्रामक सूचनाओं की अध्ययनकर्ता कैमिली फ्रैंकोइस बताती है कि 2014 में इस प्रकार की तकनीक आई तो नकली चेहरे आसानी से पकड़े जा सकते थे, लेकिन यह बेहद मुश्किल हो चुका है।
कंप्यूटर पर ऐसे बनता है नया चेहरा
एआई के लिए हर चेहरा एक गणित एआई सिस्टम चेहरे को एक जटिल गणितीय आंकड़े की तरह दिखता है। कंप्यूटर पर कुछ चेहरों की तस्वीरें अपलोड की जाती हैं जिनके फीचर का अध्ययन कर यह नया चेहरा बनाता है।
चेहरे के हर फीचर को वह ऐसे अंको में ढालता है जिन्हें बदला जा सके। इन्हीं अंको को बदलकर किसी चेहरे के आकार और बनावट आंखों, कान, नाक आदि में परिवर्तन कर नया चेहरा बनाया जा रहा है। इसे जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क नाम दिया गया है।
इसी तकनीक से मोबाइल में अनलॉक फीचर
इसी तकनीक से मोबाइल को चेहरे से अनलॉक का फीचर तैयार हुआ।
कई देशों में अपराधियों की पहचान हो रही है।
अपना नाम छिपाकर नागरिकों से खराब व्यवहार कर रहे पुलिस वालों का नाम भी उसके चेहरे की तस्वीर लेकर सर्च की जा रही है।
क्लियरव्यू एआई जैसा वेब प्रोग्राम ऑनलाइन उपलब्ध करोड़ों व तस्वीरों के जरिए अमेरिकी एजेंसियों को अनजान को पहचानने में मदद कर रहा है।
खतरे भी कम नहीं
विशेषज्ञों का मानना है कि इन दिनों नकली चारों को इस्तेमाल गलत कामों में भी हो सकता है। आतंकी, कट्टरपंथी संगठन, इंटरनेट पर भड़काऊ माहौल बनाने वाले इनका उपयोग कर सकते हैं।
गूगल की बनाए चेहरे पहचानने की एक नई तकनीक ने 2015 में दो अश्वेत लोगों की तस्वीरों को गोरिल्ला करार दिया। क्योंकि इसके पहले उसके सिस्टम में लगातार गोरिल्ला की तस्वीरें अपलोड की जा रही थी, इसे नस्लवाद माना गया।
इसी वर्ष जनवरी में अमेरिका के डेट्रॉइट एक व्यक्ति को चेहरा पहचानने की तकनीक ने अपराधी मानते हुए गिरफ्तार करवा दिया। जबकि अपराध किसी और ने किया था।
एआई प्रोग्रामों में ऐसी जानकारियां भरी जा रही हैं जिनमें मानवीय पक्षपात और दूसरी कमियां मौजूद हैं। इस वजह से यह सिस्टम भी इन्हीं खामियों से भरा है।
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