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November 16, 2020
बांग्लादेश ने सामाजिक प्रगति की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। उसने ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के लिए उत्तराधिकार का नया कानून बनाने का फैसला किया है। अपने मंत्रिमंडल की एक बैठक में प्रधानमंत्री बेगम शेख हसीना वाजेद ने इस समुदाय के लिए नया कानून लाने का एलान किया। इसके तहत बांग्लादेश में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को अपने परिवार की पुश्तैनी संपत्ति में हक मिलेगा।
बांग्लादेश जैसे रूढ़िवादी समाज में इसे सरकार का बहुत साहसी और प्रगति की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। बांग्लादेश मुस्लिम बहुल देश है। देश की करीब पौने 17 करोड़ की आबादी में ज्यादा लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं। यहां पारिवारिक कानून आम तौर पर इस्लामी कायदों से चलता है। इसके तहत माता-पिता की मृत्यु के बाद ट्रांसजेंडर संतान को पारिवारिक संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलता।
कैबिनेट की बैठक की जानकारी देते हुए बांग्लादेश के कानून मंत्री अनिसुल हक ने कहा- हम इस्लामी शरिया कानून और अपने संविधान के अनुसार नए कानून को तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे ट्रांसजेंडर संतान को परिवार में संपत्ति का अधिकार मिल सके। चूंकि संसद में सत्ताधारी अवामी पार्टी का भारी बहुमत है, इसलिए जानकारों का कहना है कि जब ये बिल पेश होगा, तो उसके आसानी से पारित हो जाने की संभावना रहेगी।
बांग्लादेश में ट्रांसजेंडर लोगों की संख्या 15 लाख बताई जाती है। 2013 में उन्हें ये कानून अधिकार मिला था कि वे अपनी पहचान एक अलग यानी तीसरे लिंग के रूप में कर सकते हैं। पिछले साल उन्हें तीसरे लिंग के रूप में खुद को मतदाता के रूप में रजिस्टर कराने का अधिकार दिया गया। इसी महीने बांग्लादेश में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए पहला मदरसा खोला गया है।
सरकार की इन कोशिशों के बावजूद बांग्लादेश में ट्रांसजेंडर और समलैंगिक लोगों को कई तरह के उत्पीड़न झेलने पड़ते हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान बना वो कानून अभी भी देश में लागू है, जिसके तहत समलैंगिक यौन संबंध को अपराध माना जाता है। इसलिए मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकार की हाल की पहल का स्वागत किया है।
हालांकि उन्होंने शक जताया है कि पारिवारिक संपत्ति में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सचमुच अधिकार मिल सकेगा। अकसर किसी ट्रांसजेंडर के पैदा होते ही परिवार के लोग उसे खुद से अलग कर देते हैं। ऐसे में बड़ा होकर वह संपत्ति में हिस्सा मांग पाएगा, यह बेहद मुश्किल समझा जाता है।
ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनाया बाणिक ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि एक कार्यकर्ता के रूप में उन्हें इस बात की खुशी है कि अब इस मुद्दे पर देश ध्यान दे रहा है। लेकिन इसके लिए सिर्फ कानून की नहीं बल्कि पूरे समाज में बदलाव की जरूरत है। बाणिक 40 साल के हैं और 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने खुद को ट्रांसजेंडर घोषित कर दिया था।
बाणिक ने बताया कि उनके परिवार पर इतना दबाव पड़ा कि परिवार के लोगों ने उन्हें खुद से अलग कर दिया। ऐसी कहानी देश में हजारों लोगों के साथ दोहराई जाती है। सामाजिक कार्यकर्ताओं को यह भय भी है कि ये कानून बनने के बाद कट्टरपंथी गुट ट्रांसजेंडर लोगों पर हमले कर सकते हैं। 2015 में कट्टरपंथियों ने एक जाने-माने समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता की हत्या कर दी थी। उसके बाद से समलैंगिक लोग और भी ज्यादा छिप कर रहने को मजबूर हो गए हैं।
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