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November 16, 2020
लोगों में मौजूद पूर्वाग्रहों का सबसे प्रमुख आधार धर्म है। ये निष्कर्ष ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन का है। अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि नस्ल या राष्ट्रीयता की तुलना में धर्म के आधार पर दूसरे समुदायों के बारे में लोग ज्यादा पूर्वाग्रह पालते हैं। ब्रिटिश अखबार द गार्जियन में एक रिपोर्ट के जारी होने से पहले छपे कुछ निष्कर्षों में ये खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट- हाउ वी गेट अलॉन्ग (हम साथ-साथ कैसे रह सकते हैं) शीर्षक से जारी हो रही है।
इसका अध्ययन प्रतिष्ठित वूल्फ इंस्टीट्यूट ने किया है। उसने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि इस अध्ययन के जरिए इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश की गईः हम अपने पड़ोसियों के बारे में क्या सोचते हैं? बात जब नस्ल, धर्म या आव्रजकों की आती है, तो उनमें से कौन सा पहलू हमें बांटता है और कौन सा साथ ले आता है? क्या अपने आसपास की विभिन्नताओं पर सबकी प्रतिक्रिया एक जैसी होती है? या कुछ लोगों के लिए विभिन्नता अलग अर्थ रखती है और कुछ लोगों में अलग भाव पैदा करती है अध्ययन वूल्फ इंस्टीट्यूट के बहुलता अध्ययन कार्यक्रम के तहत किया गया है। यह रिपोर्ट दो साल तक चले सर्वेक्षण और अध्ययनों के आधार पर तैयार की गई है।
अध्ययन से ये सामने आया कि अधिकांश लोगों के लिए धर्म एक ऐसी सीमा है, जिससे वे बंधे रहना चाहते हैं। देखा गया कि ये बात खासकर मुस्लिम धर्म के मामले में लागू होती है। सर्वे में तीन चौथाई श्वेत या एशियाई मूल के लोगों ने कहा कि उनका कोई रिश्तेदार काले समुदाय या एशियाई समुदाय के व्यक्ति से विवाह करता है, तो उन्हें कोई एतराज नहीं होगा। लेकिन सिर्फ 43 फीसदी ऐसे लोग थे, जिन्होंने कहा कि ये किसी मुस्लिम से उनके किसी रिश्तेदार के विवाह करने पर उन्हें एतराज नहीं होगा।
ऐसा पाया गया कि मुसलमानों को लेकर अकसर दूसरे धर्मावलंबियों में नकारात्मक धारणा रहती है। लेकिन बहुत से ऐसे भी लोग हैं, जो अपने से अलग किसी धर्मावलंबी व्यक्ति के बारे में नकारात्मक सोच रखते हैं। अध्ययनकर्ताओं ने सहनशीलता और पूर्वाग्रह को मापने के लिए विवाह के प्रश्न पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
वे इस नतीजे पर पहुंचे कि नस्लीय या राष्ट्रीयता की सीमाओं को लांघ कर होने वाले विवाह के प्रति मोटे तौर पर लोग सकारात्मक भावना रखते हैं। लेकिन मुस्लिम शब्द आते ही उनमें नकारात्मक प्रतिक्रिया उभर आती है। लेकिन ऐसी ही प्रतिक्रिया पाकिस्तानी शब्द पर नहीं होती, जबकि ब्रिटेन में रहने वाले ज्यादातर पाकिस्तानी मुस्लिम ही हैं।
धर्म को लेकर पूर्वाग्रह सबसे ज्यादा मजबूत उन लोगों में है, जिनकी उम्र 75 साल से ज्यादा है, जिनकी शिक्षा का स्तर कम है, जो ब्रिटेन में रहने वाले गैर-एशियाई अल्पसंख्यक समुदायों से आते हैं, या बैपटिस्ट ईसाई समुदाय से संबंध रखते हैं। यह भी सामने आया कि किसी अन्य नस्लीय, राष्ट्रीयता वाले या धार्मिक व्यक्ति से शादी के सवाल पर महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक असहज हो जाते हैं।
देखा गया कि हिंदू, सिख, यहूदी, और बौद्ध समुदायों में किसी रिश्तेदार के मुस्लिम से विवाह करने को लेकर अधिक असहजता महसूस की जाती है। ईसाई समुदाय के भीतर ऐसी भावना कम है। यह भी सामने आया कि अल्पसंख्यक समुदायों की नई पीढ़ी में धर्म को लेकर सोच में अहम बदलाव आया है।
खासकर ब्रिटेन में रहने वाली मुस्लिम महिलाएं अब विवाह के मामले में अधिक स्वतंत्र होकर फैसले कर रही हैं। इस अध्ययन में इंग्लैंड और वेल्श के 11,701 लोगों की राय ली गई। वूल्फ इंस्टीट्यूट ने दावा किया है कि यह अपनी तरह का ब्रिटेन में सबसे बड़ा अध्ययन है।
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