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October 10, 2020
अजमेर ज़िला मौखिक क्रांतिकारियों की चपेट में
ज़ुबानी-जमा ख़र्च से चल रहे हैं, नेता, प्रशासन और लोग
केकडी, ब्यावर, नसीराबाद, बिजयनगर, पुष्कर, किशनगढ़, पीसांगन हर शहर में चल रही है केवल मौखिक क्रांति
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
अजमेर मौखिक क्रांति के दौर से गुज़र रहा है। जिसे देखो वह मौखिक रूप से बयान बाज़ी कर अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहा है। मंत्री, विधायक , प्रसाशनिक अधिकारी सभी मौखिक रूप से अपने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहे हैं। जनता की अपेक्षाएं पूरी नहीं हो रहीं। अव्यवस्थाओं का कोई इलाज़ नहीं हो रहा ।सरकार मौखिक क्रांति का जनक बनी हुई है। विरोधी पार्टियां सरकार को गालियां बक कर अपने दायित्व पूरे कर रही हैं।कोरोना की आड़ में काम कोई नहीं करना चाहता, सिर्फ़ जुबानी जमा खर्च से काम चल रहा है।
जिला कलेक्टर श्री प्रकाश राजपुरोहित इस जिले के विकास में चार चांद लगाना चाहते हैं। वे जी-जान से कोशिश भी कर रहे हैं। उनकी संवेदनाओं का मूल्यांकन किया जाए तो उनमें कोई कमी नहीं, लेकिन वे जो चाह रहे हैं हो नहीं रहा! वे जो कर रहे हैं दिख नहीं रहा ! उनके आदेशों की ख़बरें ज़रूर छप रही हैं मगर आदेशों का असर नहीं देखा जा रहा
उदारहण के तौर पर जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को ही लें। कोरोना के जितने भी वार्ड इस अस्पताल में हैं सभी पशु चिकित्सालय होकर रह गए हैं। मैं हर बार ब्लॉग लिखता हुँ,वे हर बार फिर दौरा कर आते हैं।सच है कि वे कई बार अस्पताल का दौरा करके आए हैं।उन्होंने हालात सुधारने के लिए कई सख्त आदेश भी जारी किए थे मगर उनके आदेशों के अनुपालना अब तक नहीं हुई। आदत से लाचार अस्पताल प्रबंधन ने किसी भी प्रकार के बदलाव से जनता को फायदा नहीं पहुंचाया। सिर्फ और सिर्फ मौखिक क्रांति।
चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा जिले के प्रति अतिरिक्त सावधान होकर पिछले दिनों जिले के अस्पतालों को सुधारने के लिए आक्रामक नज़र आए और उन्होंने नसीराबाद के सरकारी अस्पताल में जाकर अव्यवस्थाओं का जायज़ा लिया। डॉक्टरों को हड़काया भी । लोगों को सुविधाएं दिए जाने के निर्देश भी दिए ।लेकिन क्या हुआ उनकी डांट फटकार का क्या हुआ उनके आदेशों और निर्देशो का आज भी स्थिति वैसी की वैसी बनी हुई है।
उधर मंत्री जी का कारवां अस्पताल से रवाना हुआ इधर अस्पताल प्रबंधन ठहाका लगाकर हंसी उड़ाता नज़र आया।
दूसरे ही दिन जैन समाज के एक और व्यक्ति राजकुमार जैन की अव्यवस्थाओं ने बलि ले ली। इलाज़ के नाम पर इस अस्पताल में कुछ होता ही नहीं। ज़रा सी चुनौती भरा केस सामने आते ही सबसे पहले उसको अजमेर रेफर कर दिया जाता है। वे जानते हैं कि अपने बचने का सबसे बढ़िया यही तरीका है ।ना वे इलाज़ करेंगे ना कोई उनकी जिम्मेदारी होगी।
नसीराबाद के जैन समाज में पत्रकार अतुल सेठी व राजकुमार जैन की अव्यवस्थाओं के चलते हुई मौत से भारी रोष है। परंतु सरकार के पास अब तक कोई हल नहीं ।
मैंने इंडीयन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के प्रदेश उपाध्यक्ष के रूप में मुख्यमंत्री जी से बात की। उन्होंने चिकित्सा मंत्री को भिजवा दिया। चिकित्सा मंत्री आए भी और अपने कर्तव्यों का पालन करके चले भी गए ।अव्यवस्थाओं का बाल बांका नहीं हुआ ।मौखक क्रांति चलती रही।नसीराबाद , किशनगढ़, बिजय नगर, ब्यावर , मसूदा , पुष्कर , पीसांगन, केकड़ी कहीं के भी अस्पताल में आप चले जाएं आपको मरीज़ और उनके परिजन रोते ही मिलेंगे ।
मुख्यमंत्री गहलोत रोज़ ऊंची ऊंची डींगे हांकते दिखेंगे! अखबारों में मंत्रियों की मौखिक क्रांतियों के बयान सामने नज़र आएंगे मगर होगा कुछ नहीं।
जिले के विधायकों को ही लें तो आधे से ज्यादा विधायकों के मुंह में तो जुबान जैसे है ही नहीं। कुछ के हैं तो वे अजमेर के अलावा बाकी पूरे देश की चिंता में डूबी हुई हैं।
आज का अखबार पढ़ रहा था। अजमेर के भाऊ बली विधायक देवनानी जी सरकार को पानी पी पीकर कोसते नज़र आए ।करौली में क्या हुआ राज्य के दूसरे इलाकों में कहां-कहां क्या-क्या हो रहा है सरकार किस किस मोर्चे पर फेल हो रही है सब कुछ था, पर सिर्फ़ मौखिक क्रांति के रूप में।
अजमेर जिले में क्या हो रहा हैउनके विधानसभा क्षेत्र में क्या चल रहा है यह कुछ नहीं था! मैं देवनानी जी का दुश्मन नहीं! उनका पक्का मतदाता हूं! राज्य की चिंता में उन्हें डूबा देख कर मुझे खुशी होती है! वह अपने आप को राज्य स्तर का नेता साबित करने के लिए यदि अपना नज़रिया राज्य स्तर का रखते हैं तो यह अच्छी बात है मगर भाई साहब !! अब आप राज्य के शिक्षा मंत्री नहीं बल्कि अपने इलाके के सिर्फ और सिर्फ विधायक हैं ! ज़रा अपने क्षेत्र पर भी सीमित हो जाइये!
जिले के अन्य विधायकों की स्थिति तो देवनानी जी से भी ज्यादा खराब है।वे तो अपने क्षेत्र की समस्याओं पर बोलते ही नज़र नहीं आते !! पता नहीं जनता ने उन्हें क्या सोचकर वोट दे दिया विधानसभा पहुंचा दिया ! आज के हाल तो ये हैं कि जनता मर रही है ,पिस रही है मगर कहीं कुछ सार्थक नहीं हो रहा। लग ही नहीं रहा कि किसी विधानसभा क्षेत्र में उनका विधायक उनके दुख दर्द में शामिल हो रहा है। बिजली, पानी , चिकित्सा , शिक्षा सभी मौखिक क्रांति के विषय बन चुके हैं ।लोग अपनी बातें विज्ञप्ति जारी करके ही कर रहे हैं ।
मेरे पास रोज़ सैकड़ों फोन आते हैं। राजनेता और प्रशासन को जमकर गालियां दी जाती हैं मगर मैं उनसे कहता हूं कि अपनी समस्याओं के लिए सिर्फ ब्लॉग लिखना ही काफी नहीं है। आप भी घर से बाहर सड़कों पर आइए, पर इस बात पर सब कोरोना पीड़ित हो जाते हैं ।
दोस्तों! शहर के विकास के लिए एस पी मित्तल , ओम माथुर, राकेश आनंदकर , गिरधर तेजवानी, नरेश राघानी या राजेश टंडन ही बोलते रहें जनता यह उम्मीद क्यों करती है
हमारे में जितनी क्षमता है हम सब मिलकर तो बोलते ही हैं मगर मौखिक क्रांति के इस दौर में जनता को भी आगे आना चाहिए।
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