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क़लमकार: पूर्व मेयर गहलोत पर फिर लटकी जाँच की तलवार

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October 8, 2020

अजमेर नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेंद्र गहलोत संकट में हैं

पूर्व मेयर गहलोत पर फिर लटकी जाँच की तलवार
                       सुरेन्द्र चतुर्वेदी
                अजमेर नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेंद्र गहलोत संकट में हैं। हाल ही में वे लंबी बीमारी से अपना इलाज़ करवा कर अजमेर लौटे हैं। अभी भी दवाइयों से उनका पीछा नहीं छूटा है। बेहद कमज़ोर हो गए हैं । उन्हें लंबे समय तक आराम की ज़रूरत है ,लेकिन लग नहीं रहा कि उन्हें आराम के लिए मोहलत दी जाएगी। उनके विरुद्ध लंबित जांच में अब फिर से तेजी लाई जा रही है
              विशिष्ट शासन सचिव विधि मुदिता भार्गव ने कोरोना के कारण जांच की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिए थे। अब उन्होंने ब्रेक से  पैर हटाने की बात कही है ।जाहिर है कि अब फिर से जांच रफ्तार पकड़ लेगी ।
                  यदि ऐसा हुआ तो धर्मेंद्र गहलोत भला आराम कैसे कर पाएंगे ? मेरा मानना है कि अभी जांच कुछ दिन और रोक दी जानी चाहिए! गहलोत जी की शारीरिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए! मित्रों!  पूर्व मेयर गहलोत का यह मामला साल भर पहले का है। मामला अपने समय में बहुत चर्चित रहा। कई दौरों से गुज़रा ।कई स्तरों पर जांच भी हुई और अंत में यह जांच 15 नवंबर 2019 को न्यायिक अधिकारी मुदिता भार्गव को सुपुर्द कर दी गई ।उस समय वे  विधि विभाग में संयुक्त सचिव ड्राफ्टिंग के पद पर कार्यरत थीं।अब वे विशिष्ट शासन सचिव  हैं ।
                 अजमेर नगर निगम द्वारा कानून कायदों को ताक पर रखकर 13 व्यावसायिक भवनों के नक्शे स्वीकृत करने का यह मामला पूर्व निगम आयुक्त चिन्मयी  गोपाल के कार्यकाल में काफी गरमाया था ।न केवल अजमेर बल्कि पूरे राजस्थान में मामले की धूम मची थी । जम कर अखबार बाजी हुई थी ।मामला चर्चित होने पर इसकी जांच स्वायत शासन विभाग ने अपने स्तर पर करवाई और इस मामले में मेयर गहलोत को दोषी ठहरा दिया गया।
                        र्मेंद्र गहलोत क्योंकि भाजपा के थे और राज्य में सत्ता कांग्रेस की थी इसलिए माना यह जा रहा था कि मेयर गहलोत पर कड़ी कार्रवाई होगी और उन्हें अपने मेयर पद से तो हाथ धोना ही पड़ेगा, साथ ही कानूनी तलवार से जख्मी भी होना पड़ सकता है , मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
                  इसमें गहलोत की दूरदर्शिता व रणनीति काम करती रही। जांच प्रबंधन कई स्तरों पर , कई तरीकों से होता रहा 
               स्वायत शासन विभाग की रिपोर्ट आई ।उसमें गहलोत को दोषी माना गया ।नक्शे बेहद गलत तरीके से पास किए गए यह साफ तौर पर कहा गया।
                   मुख्यमंत्री गहलोत भी इस मामले में आगे आए ।उन्हें रिपोर्ट दी गई कि मेयर ने ग़लत तरीक़े से नक़्शे पास किए। उन पर कार्रवाई की जाए।
          कार्रवाई तो नहीं हुई मगर अजमेर के तत्कालीन अतिरिक्त जिला कलक्टर अशोक योगी की सदारत में एक जांच समिति गठित हो गई ।इस समिति ने भी बिना प्रभावित हुए अपनी रिपोर्ट दे दी ।तत्कालीन उपायुक्त गजेंद्र सिंह रलावता, सहायक अभियंता मनमोहन माथुर व कनिष्ठ अभियंता को इस रिपोर्ट में दोषी मान लिया गया।
                   स्वायत शासन विभाग के तत्कालीन सचिव सिद्धार्थ अरोड़ा ने भी फुर्ती दिखाई और मुख्यमंत्री को लगे हाथ यह रिपोर्ट सौंप दी। सरकार चाहती तो उस समय ही कोई ठोस निर्णय गहलोत व उनकी टीम के विरुद्ध ले सकती थी मगर क्या हुआ क्या नहीं हुआ ये तो ईश्वर जाने पर किसी दोषी का बाल भी बांका नहीं हुआ।
                   यूडीएच की जांच हुई तो उसमें भी मान लिया गया कि 13 व्यावसायिक भवनों के नक्शे ग़लत तरीके से पास किए गए हैं। सब कुछ होने के बाद भी हलवा खाया और खिलाया गया। कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ। इसके बाद न्यायिक जांच का फैसला हुआ जिसे कोरोना खा गया।
            सौभाग्यशाली रहे धर्मेंद्र गहलोत जिनके कुशल प्रबंधन के कारण उनका खतरे में पड़ा  कार्यकाल मूंछें तान कर पूरा हो ही गया ।
                   अब मामला फिर कब्र से निकल आया है ।ऐसे में अगर जांच रफ्तार पकड़ती है और जांच रिपोर्ट गहलोत के विरुद्ध आती है तो यह गहलोत की बिगड़ी हुई सेहत के लिए बिल्कुल ठीक नहीं होगा ।
               ईश्वर करे जाँच उसी तरह ठंडे बस्ते में रखी रहे जिस तरह पिछले ग्यारह महीने रही।मुझे उम्मीद है जैसा मैं चाह रहा हूं वैसा ही होगा। क्योंकि ईश्वर बड़ा दयालु है


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