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October 1, 2020
रजिया जा चुकी है गुंडे चांदी काट रहे हैं
नरक निगम और अजमेर विनाश प्राधिकरण ने मुँह पर ही नहीं आँखों पर भी लगा लिया है मास्क
अवैध निर्माणों और अतिक्रमणों से रख रहे हैं डिस्टेंसिग: नोटों से हो रही है सेनेटाईजिंग
अब जिले के मालिक खोलें अपनी आंखें तो ही हो सकता है अजमेर शहर का उद्धार
अधिकारी नहीं पढ़ेंगे, आप पढ़ लें
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
खाली बैठा है प्रशासन। कोई काम नहीं ।स्मार्ट सिटी अजमेर के उदासीन अधिकारियों ने अजमेर के विभागों को निठल्ला बना दिया है। नगर निगम को कभी किसी पार्षद ने नरक निगम क्या कह दिया था ।बावेला मच गया था। मेयर गहलोत के प्राण सूख गए थे। फिर पता चला जिस तरह पैसा कमाया कुछ ठिकाने लग गया, कुछ और लग जाएगा । सब यहीं धरा रह जाएगा ।आपको भी पता चल ही गया होगा।
अब मैं कह रहा हूं कि नगर निगम नरक निगम बन चुका है। अजमेर विकास प्राधिकरण यानी एडीए अब अजमेर विनाश प्राधिकरण बन चुका है।
स्मार्ट संभागीय आयुक्त और एक्स्ट्रा स्मार्ट जिला कलेक्टर सिर्फ योजनाओं पर कड़ी नज़र रखने का उपक्रम कर रहे हैं ।महीने में दो-चार बार अस्पताल के दौरे कॉविड 19 के लिए सभाएं स्मार्ट सिटी के लिए दौरे और बैठकें बस पक गई तनख्वाह हो गई नौकरी
नरक निगम और अजमेर विनाश प्राधिकरण में अधिकारी और कर्मचारी एक तरफ जमकर चांदी काट रहे हैं दूसरी तरफ शहर में धड़ल्ले से अतिक्रमण हो रहे हैं। बेखौफ अवैध व्यावसायिक शोरूम बनाए जा रहे हैं । निगम और प्राधिकरण की ज़मीनों तक पर भूमाफिया कब्जे कर रहे हैं और करवा रहे हैं।
इस गूंगे, अंधे, बहरे प्रशासन का जीता जागता उदाहरण नया बाजार मुख्य चौपड़ पर मेन रोड पर बनी चार मंजिला व्यावसायिक इमारत है जो स्थानीय व्यापारियों के विरोध के बावजूद बेख़ौफ़ बेधड़क बन गयी और नरक निगम प्रशासन अब तक भी अपनी आंख, कान, मुँह बन्द किये बैठा है।
राजनेताओं के समधियों का राजपाट गुंडागर्दी से चल रहा है। यदि मुझसे पूछा जाए कि इतना कड़वा सच मैं क्यों बोल रहा हूं क्यों अनाप-शनाप लिख रहा हूं तो मैं ग़ुस्से में कहूँगा कि ये शहर का दर्द है जो बवासीर की शक्ल में हर रोज़ मेरे शरीर के नीचे वाले हिस्से में महसूस होता है ।जख्मों से लहू टपकता है।
शहर में वैशाली नगर से तो आप रोज़ या गाहे बगाए गुज़रते ही होंगे। जिला कलेक्टर अजमेर जो विकास प्राधिकरण के मुखिया भी हैं, और जिले के मालिक भी उनका भी अक्सर वैशाली नगर से गुज़रना होता ही होगा। यदि थकान से वे अपनी आंखें बंद न रखते हों तो उन्हें भी दिखाई दे ही जाता होगा कि अतिक्रमणकारियों के हौसले कितने बुलंद हैं ।
कुछ प्रभावशाली गुंडों ने ( राजनेता तो अब उन्हें कह नहीं सकता) अर्बन हाट से लेकर रीजनल कॉलेज तक सड़क के दोनों तरफ कच्चे पक्के अतिक्रमण कर रखे हैं या करवा रखे हैं। गुंडों की तरह इनकी चौथ वसूली का कारोबार चल रहा है। जो पैसा सरकारी खजाने में जाना चाहिए , इन गुंडों की जेब में जा रहा है।
यदि जिला प्रशासन चाहे तो मेरे साथ चले, मेरी आंखों से देखें (पर वह नहीं चलेगा) क्योंकि उसकी आंखों पर सरकारी ताक़त का मोतियाबिंद जो हो रखा है ।
ऐसे गरीब लोग यदि सड़कों पर ठेले लगा कर घर चलाते तो कोई दुख नहीं होता मगर इन हरामी गुंडों ने सड़कों पर पक्की दुकानें, रेस्टोरेंट और व्यवसायिक केंद्र चलवा रखे हैं। बधिर विद्यालय के सामने पिछले दिनों गूंगे बहरे जिला प्रशासन के पलीता लगाते हुए करीब 50 केबिन के रूप में पक्की दुकानें बना दी गईं हैं।
यही खेल धर्मेंद्र गहलोत के समय में कश्यप डेयरी के आगे खेला गया था। निगम की बेशकीमती ज़मीन के बाहर तत्कालीन जिला कलेक्टर गौरव गोयल के विरोध के बावजूद 50 दुकानें वेंडिंग जोन के नाम पर बना दी गईं फिर उन्हें निगम से पक्का तक करवा लिया गया। कुछ गुंडों ने इनमे से कई दुकानों के लाइसेंस ले लिए।अब वे उन से किराया वसूली तक कर रहे हैं।
योजना क्षेत्र में ही इनकम टैक्स कॉलोनी भी है। निगम के अधिकारी यदि यहाँ देखने आने की फ़ुर्सत निकालें तो उन्हें पता चलेगा कि क्षेत्रीय गुंडों ने किस तरह ममता स्वीट्स के सामने वाले रिहायशी मकानों के सामने लोहे की केबिन बनानी शुरू कर दी है। कौन दे रहा है इनको इजाज़त ? क्या जिला कलेक्टर श्री प्रकाश राजपुरोहित जनता को इस बात का जवाब देंगे? नरक निगम और विनाश विकास प्राधिकरण के ईमानदार अधिकारियों से ग़रीब जनता ये पूछ रही है ।
नगर निगम में जब चिन्मयी गोपाल आयुक्त थीं उन्होंने इन्हीं गुंडों से पंगा लेकर इनकी काली करतूतों पर रोक लगा दी थी। अब वही गुंडे मूंछ मरोड़ कर अतिक्रमण में जुट गए हैं। जबकि चिन्मयी गोपाल ने भी तो नगर निगम में अपने पद ( आयुक्त) की शक्ति का ही तो पालन किया था। और अब भी इस पद पर कोई तो प्रशासनिक अधिकारी है ही। पर अब उस पद की शक्ति और गरिमा दोनो ही गायब..
पता चला है कि नए मास्टर प्लान में इस गौरव पथ रोड को व्यवसाइक घोषित कर दिया है। यदि ऐसा है तो इस क्षेत्र की ज़मीनों की कीमतें और बढ़ जाती हैं। प्रशासन को अपनी बेशकीमती ज़मीन अतिक्रमण से बचाने के प्रयास करने चाहिए। सेट बैक , पार्किग और नक्शा पास करने के नियम का कड़ाई से पालन करना चाहिए। इन ज़मीनों पर हुए निर्माण से सरकारी राजस्व बढ़ाया जाना चाहिए मगर सरकार के खाली ख़ज़ाने भरने के लिए नहीं अधिकारी तो अपनी जेब भरने के लिए चिंतित हैं ।
बस मोटर व्हीकल एक्ट के तहत जगह-जगह चालान बनाकर यातायात विभाग से सरकारी खजाने भरे जा रहे हैं । बस नौकरी पेशा और आम लोगों की जेबों से पैसा निकाला जा रहा है।
सरिता पान हाउस के सामने अविप्रा की अरबों रुपये की जमीन के बाहर जिस तरह वेंडिंग जोन बनाकर कर जगह अलॉट कर दी गईं और गुंडों ने किराया वसूल करना शुरू कर दिया, वैसे ही अब ममता पान भंडार और रीजनल कॉलेज रोड़ पर वही पुराने गुंडे ,उसी पुरानी योजना पर काम कर रहे हैं ।
शहर में धड़ल्ले से अवैध शोरूम्स बनाए जा रहे हैं। पहले नगर निगम में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि चांदी काट रहे थे अब गुंडे ।
मुझे नहीं लगता कि जिला प्रशासन इस मामले में गंभीर होगा। कोरोना की आड़ में, कोरोना के बहाने जिला प्रशासन ने मुँह पर ही नहीं आंखों पर भी मास्क लगा लिया है ।अवैध निर्माणों से डिस्टेंसिंग बना रखी है। नोटों से हाथों की सेनेटीजिंग की जा रही है। गुंडे मजे ले रहे हैं। रजिया तो जा चुकी है।
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