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क़लमकार: अजमेर का नेहरू अस्पताल अब ज़िला प्रशासन के हाथ से निकला

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September 23, 2020

चिकित्सा प्रबंधन पूरी तरह फेल: संदिग्ध हुई जांचें: मरीज़ खुद ला रहे हैं बाज़ार से ऑक्सीजन: इंजेक्शन तक लगा रहे हैं परिजन

अजमेर का नेहरू अस्पताल अब ज़िला प्रशासन के हाथ से निकला

चिकित्सा प्रबंधन पूरी तरह फेल: संदिग्ध हुई जांचें: मरीज़ खुद ला रहे हैं बाज़ार से ऑक्सीजन: इंजेक्शन तक लगा रहे हैं परिजन

प्रमुख सचिव अरोड़ा का कोरोना वार्ड दौरा हो सकता है कोरोना से संक्रमित

ज़िले के निजी क्लीनिक हो सकते हैं बन्द

सुरेन्द्र चतुर्वेदी

आज मैं कोरोना पर ब्लॉग नहीं लिखना चाहता था मगर हालात ऐसे हो गए हैं कि मुझे आज भी कोरोना पर ही अपना ब्लॉग लिखना पड़ रहा है ।
अजमेर जिले में कोरोना से उपजे हालातों ने अब पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ने शुरू कर दिए हैं। जिला प्रशासन की मुस्तैदी घुटने टेक चुकी है, और चिकित्सा विभाग के आला अधिकारियों का अपने ही विभाग पर नियंत्रण दम तोड़ चुका है ।कोरोना से होने वाली मौतों को छिपाया जा रहा है। विभाग जो आंकड़े जारी कर रहा है वे हकीकत की हंसी उड़ा रहे हैं।
कल शहर में पूजा मार्ग और धोला भाटा क्षेत्र में दो कोरोना संक्रमितों की मौत हुईं, जिन्हें सरकारी रिपोर्ट में शामिल ही नहीं किया गया।
तोपदड़ा इलाके के ओमप्रकाश टांक कि कल शाम क्षेत्रपाल अस्पताल में मौत हुई।वह सेटेलाइट अस्पताल में लैब कर्मचारी था ।जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को कोरोना वार्ड में एडमिट रहा। बाद में क्षेत्रपाल गया जहाँ वह जीवन युद्ध हार गया।
नेहरू अस्पताल के कोरोना वार्ड में उसकी हालत गंभीर थी ।आठ दिन तक उपचार के नाम पर नाटक होता रहा।हर बेड पर ऑक्सीजन होगी।ज़िला कलेक्टर ने ऐसा कहा था। पर वहां ऑक्सीजन की कोई व्यवस्था नहीं थी। जांचें हो नहीं रही थीं। जो जांचे हुईं उनकी रिपोर्ट ही गलत आईं।वार्ड में भर्ती ओमप्रकाश टांक के लिए जब ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध नहीं हुआ तो उनके परिजन बाज़ार से ब्लेक में सिलेंडर लेकर आए। इससे ज्यादा शर्म की बात क्या होगी कि टांक के ज़रूरी इंजेक्शन लगाने वाला जब कोई चिकित्सा कर्मी नहीं आया तो मरीज़ के बड़े भाई योगेश ने जो निजी अस्पताल में काम करते हैं ने खुद जबरदस्ती कोरोना वार्ड में जाने का रिस्क लिया और अपने भाई के इंजेक्शन लगाया ।
बड़े भाई योगेश का कहना है कि अस्पताल में कोरोना वार्ड के हाल खराब हैं। वार्ड का प्रबंधन जिन डॉक्टरों के नाम पर चल रहा है वे मरीजों को देखने तक नहीं आते। नए-नए रेजिडेंट जो दो-चार महीने का अनुभव भी नहीं रखते।कोरोना की जिनको पूरी जानकारी भी नहीं वो वार्ड संभाल रहे हैं ।सच मानो तो मरीजों की देख रेख सफाई कर्मियों के हवाले ही है ।
जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित आए रोज़ वार्ड का निरीक्षण कर रहे तब यह हाल हैं ।वार्ड में होने वाली जांच रिपोर्ट आने पर वे भी गलत साबित हो रही हैं।
कल सर्किट हाउस सेवाओं से जुड़े एक अधिकारी भीलवाड़ा में अपने जीजा जी के पास रहकर लौटे । जीजा जी कोरोना पॉजिटिव थे। उन्हें भी सांस लेने में तक़लीफ हो रही थी।वे पुलिस लाइन कोरोना जांच केंद्र पहुंच गए। दो घंटे लंबी लाइन में धूप में खड़े रहे ।जब उनका नंबर आया तो उनकी जांच करने से इनकार कर दिया गया। उन्होंने सी एम एच ओ के के सोनी को हडकाया तो ही उनकी जांच हो पाई ।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग और परिवार कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव अखिल अरोड़ा मंगलवार को जेएलएन अस्पताल का निरीक्षण करने पहुंचे ।वे सीधे ट्रॉमा यूनिट के कोरोना वार्ड पहुंच गए। उनके स्वागत में सी एम एच ओ के के सोनी, डॉ संपत सिंह जोधा , अस्पताल अधीक्षक अनिल जैन और कोरोना वार्ड प्रभारी डॉ अरविंद खरे सहित कई अधिकारी मौजूद थे। इन सब महानुभावों ने बाहुबली होने का परिचय देते हुए बिना पी पी ई किट्स पहने निरीक्षण किया ।यह सरकारी एडवाइजरी के पूर्णतः विरुद्ध था ।बिना सुरक्षा कवच धारण किए वार्ड में प्रवेश गैरकानूनी ही नहीं खतरनाक भी था।
माननीय अरोड़ा जी ने एक तरफ तो बिना किट पहने कोरोना वार्ड का दौरा किया बाद में सीधे कलेक्ट्रेट कार्यालय में जाकर उन्होंने अधिकारियों की बैठक भी ले ली।
खुदा ना खास्ता अरोड़ा कोरोना वार्ड से वायरस का प्रसाद लेकर बैठक में आ गए हो तो जिला प्रशासन के अधिकारियों का भगवान ही मालिक है ।उनकी इस बचकाना हरक़त का प्रभाव आगे क्या होगा ये आने वाले दो-चार दिन ही बताएंगे ।
जिस समय अरोड़ा के नेहरू अस्पताल पहुंचने की पूर्व सूचना अस्पताल प्रबंधन को मिली जल्दी-जल्दी में दो जगह कोरोना की हेल्प डेस्क खोल दी गई। एक हेल्प डेस्क चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा की थी ।इसी में कोरोना की डेस्क भी चला दी गई ।शाम को चर्म रोग विभाग अध्यक्ष राजकुमार कोठीवाला के कक्ष में भी हेल्प डेस्क खोलने का नाटक कर दिया गया। खुद अरोड़ा को इस विषय में मौजूद चिकित्सा अधिकारियों ने भ्रम में रखा ।
कुल मिलाकर अजमेर के नेहरू अस्पताल में पोपा बाई का राज चल रहा है ।जिला कलेक्टर राजपुरोहित जरूर संवेदनशीलता बरत रहे हैं वही मोटी खाल के चिकित्सा अधिकारी उनके आदेशों को गंभीरता से ले ही नहीं रहे। ऐसे में जिला कलेक्टर को कठोर फैसले लेने ही होंगे जब तक इन चिकित्सा अधिकारियों की मोटी खाल पर कार्रवाई के इंजेक्शन नहीं लगाए जाएंगे तब तक सार्थक परिणाम आने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।
जहां तक शहर में छोटे-छोटे निजी डॉक्टरों के क्लीनिक हैं लगभग सभी बंद होने के कगार पर हैं। सभी के संचालक डॉक्टर बढ़ते हुए कोरोना के खतरों से डरे हुए हैं। नेहरू अस्पताल से डरे हुए लोग निजी क्लिनिक्स पर इलाज़ करवाने पहुंचते हैं।अजमेर के लगभग सभी निजी क्लीनिक में एक न एक कर्मचारी कोरोना की चपेट में आकर घर बैठा हुआ है ।क्लीनिक डरे हुए हैं ।हो सकता है शहर की बीमारियों को संतुलित करने वाले,दवाब कम करने वाले ये क्लिनिक बंद ही हो जाएं और अजमेर की स्थिति और भयावह हो जाए ।
जहां मैं अजमेर शहर की बात कर रहा हूँ उसी क्रम में केकड़ी, ब्यावर, नसीराबाद, विजयनगर ,पीसांगन, पुष्कर और किशनगढ़ शहर के अस्पतालों और निजी क्लिनिक्स को भी लिया जाना चाहिए। यहां भी लगभग यही हालात हैं।


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