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August 8, 2020
राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस का चाल चरित्र ख़तरे में
गहलोत का जादू बदला हाथ की सफ़ाई में_
पूनिया पर भारी पड़ रही हैं वसुंधरा_
कोरोना ले रहा है दोनों के ही मज़े_
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
राजस्थान में सियासत कोरोना पर भारी पड़ रही है। जो शक्ति कोरोना के संहार पर लगाई जानी चाहिए वह भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अपने शक्ति संतुलन में लगा रही हैं।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के अंदरूनी हालात एक जैसे हैं। कांग्रेस जहां सचिन पायलट से लोहा ले रही है वहीं भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा के पंगों से विचलित है। दोनों ही पार्टियां अपने-अपने नाराज नेताओं के सामने घुटने टेक चुकी हैं। दोनों ही पार्टियों के हाईकमान नाराज़ ताक़तवर नेताओं से पीछा छुड़ाने या उन्हें बर्फ़ में लगाने का हौसला नहीं कर पा रहे ।
भाजपा कांग्रेस पर हमले कर रही है और कांग्रेस भाजपा पर । दोनों पार्टियां के एक-दूसरे पर हमले मौखिक क्रांति के अलावा कुछ नहीं।
जहां तक नेताओं की खरीद-फरोख्त का सवाल है दोनों ही पार्टियां डरी हुई हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां अपने नेताओं के चाल और चरित्र से वाकिफ़ हैं। दोनों जानती हैं कि उनके नेता लालची और महत्वाकांक्षी हैं, बिकना उनके डीएनए में शामिल है इसलिए दोनों ही पार्टियों का हाईकमान अब अधिक ही सावधान है।
इन दिनों भाजपा भी अपने विधायकों की खरीद-फरोख्त से डरी हुई है। उसने आरोप लगाया है कि कांग्रेस के कुछ लोग भाजपा विधायकों से उन्हें खरीदने के लिए संपर्क कर रहे हैं। कांग्रेस तो पहले ही भाजपा पर यह आरोप लगा चुकी है। कांग्रेस का हाई कमान अब पूरी तरह सक्रिय हो गया है। मानसून की तरह उस पर दवाब बढ़ता ही जा रहा है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी अपना इलाज़ कराने के बाद फिर से सक्रिय हो उठी हैं। उन्होंने राज्यसभा सांसद वेणुगोपाल को जैसलमेर भेजा है। सोनिया गांधी से कई महत्वपूर्ण सूचनाएं निर्देश व अधिकार लेकर वे आए हैं। उनके आने पर अशोक गहलोत बीमार हो गए हैं। उन्हें जैसलमेर जाना था, मगर वे नहीं जा पाए। वह बीमार है या हाईकमान के किसी फैसले से नाराज़ यह अभी पता नहीं चल सका है।
मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब कांग्रेस हाईकमान अशोक गहलोत के गले में नियंत्रण का पट्टा डालने के मूड में है जो गहलोत को रास नहीं आ रहा।
जैसलमेर के सूर्यागढ़ बाड़े में बंद विधायक अपने राजनीतिक बंदी करण से तंग आ चुके हैं। पांच सितारा होटलों में जीवन यापन करते- करते उन्हें ढाबे और धर्मशालाएं याद आने लगी हैं।
विधायक गहलोत की पाबंदियों से परेशान भी हैं। गहलोत से अब उनकी प्रसन्नता उतनी नहीं रही जितनी शुरू में थी।
महाराज वेणु गोपाल , गहलोत की अनुपस्थिति में इन बारातियों की शिकायतें सुनेंगे। आरोप लगाए जा रहे हैं कि कुछ विधायकों के जयपुर मानसरोवर में बैठकर फ़ोन टेप कराए जा रहे हैं। इन आरोपों के मीडिया में आने के बाद जैसलमेर में विधायकों की नाराज़गी वाज़िब भी है।
उधर पुलिस कंट्रोल रूम ने फ़ोन टेप किए जाने की बात को सिरे से खारिज कर दिया है लेकिन विधायकों को यह यकीन दिलाना मुश्किल होगा।
उधर गहलोत का काला जादू हाथ की सफाई में बदलता जा रहा है, इधर भाजपा अपनी पार्टी के अंतर कलेशों को निपटाने की जगह कांग्रेस का भट्टा बैठाने में ज्यादा रुचि ले रही है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया नकारात्मक राजनीति में लगकर रात दिन सिर्फ़ गहलोत पर हमला करने में व्यस्त नज़र आते हैं। जिस तरह बिल्ली को ख्वाब में भी छिछडे ही नज़र आते हैं, उसी तरह उनको सिर्फ गहलोत की बर्बादी के रास्ते ही नज़र आ रहे हैं। सकारात्मक राजनीति उनके चाल चलन से निकलती जा रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की शिकायत उन्होंने हाईकमान से पुरज़ोर शब्दों में की थी। राज्य में किस तरह वे भाजपा के पलीता लगा रही है ये कहा गया था। गहलोत से तालमेल रखने का आरोप भी लगाया गया था मगर आरोप लगाते हुए पूनिया जी ये भूल गए कि वसुंधरा खुश्बूदार धुआँ देने वाली अगरबत्ती नहीं है। वसुन्धरा तो आँधियों में जलने वाला दीया हैं। वह उनकी फूँक से बुझ ही नही सकता।
कहा जा रहा था कि वसुंधरा को दिल्ली बुलाकर फटकारा जाएगा। उनके तबीयत ठिकाने लगाई जाएगी मगर दिल्ली जाकर वसुंधरा जी का क़द और ऊंचा हो रहा है। हाईकमान उन्हें ताक़तवर बनाने की दिशा में नए नए पैंतरे सोच रही है। राज्य में उनके पंखों को कतरने की जगह ताक़तवर बनाए जाने का मसौदा बनाया जा रहा है। राज्यपाल बनाकर उनको राजस्थान की राजनीति से दूर रखने का पासा फेल हो चुका है।
हाईकमान जानता है कि सतीश पूनिया की कसौटी पर यदि वसुंधरा को कसा गया तो भाजपा को लेने के देने पड़ जाएंगे। पूनिया ने संगठन में जिस तरह अपनी टीम बनाई है उसके बाद पूरे राज्य में उनसे कई शक्तिशाली छिटक गए हैं। छिटके हुए नेता छोटी तादाद में नहीं। एक बहुत बड़ा समूह जो कल तक वसुंधरा के साथ नहीं था। पूनिया से अपनी कुछ उम्मीदों के कारण जुड़ा हुआ था अब टूट कर पूरी तरह वसुंधरा जी के साथ हो लिया है।
यदि भाजपा में लोकतांत्रिक तरीके से पूनिया और वसुंधरा के बीच चुनाव हो तो पूनिया को पता चल सकता है कि कितनी ताक़त उनमें बची रह गई है। वसुंधरा तो संगठन में भी उनसे ज्यादा भारी हैं।
ऐसे में हाईकमान उनकी तुलना में पुनिया को तरज़ीह नहीं देना चाह रहा।वसुंधरा जी दिल्ली में दिग्गजों से मिलकर अपनी बात कह रही हैं। मुझे लग रहा है कि उनके लौटने पर वे खोई हुई ताक़त और गरिमा को लेकर फिर सक्रिय होंगी।
कांग्रेस और भाजपा का चाल चरित्र एक जैसा होने के कारण राजस्थान का सियासी माहौल गर्म है। कोरोना अभी मज़े में है वो दोनों ही पार्टियों को दुआ दे रहा है।
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