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क़लमकार: एक बहुत कड़वा किन्तु सच्चा ब्लॉग, जरूर पढ़ें

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August 7, 2020

फिर चाहे गालियाँ दें या शाबाशी

एक बहुत कड़वा किन्तु सच्चा ब्लॉग, जरूर पढ़ें  फिर चाहे गालियाँ दें या शाबाशी

सुरेन्द्र चतुर्वेदी

राजस्थान अपने सबसे बुरे समय से गुज़र रहा है। कोरोना का कहर, आर्थिक संकट और सियासत की उठापटक के कारण राजस्थान का विकास सिर्फ़ काग़ज़ों और सरकारी फाइलों पर ही नज़र आने लगा है।
जिन लोगों पर राजस्थान के विकास की ज़िम्मेदारी है, वे बाड़ों में छुपे बैठे हैं। जिन लोगों को विपक्ष की भूमिका निभाते हुए लोकतंत्र का हवलदार बनना चाहिए था, वे सिर्फ़ सरकार गिराने और अपनी बनाने की संभावनाओं पर शतरंज की चाल चल रहे हैं। ऐसे विषम काल मे भी अजमेर में तो अभी भी प्रतिद्वंद्विता चरम पर है देखिये ना अजमेर में भाऊ ने जगह जगह अपने फोटो के साथ पोस्टर बैनर लगाकर ये प्रदर्शित करने की कोशिश की जैसे अजमेर में कैवल मात्र वे ही असली रामभक्त हैं। और सबसे बड़ी बात ये है कि भाऊ के साथ किसी भी आका की फोटो उन पोस्टरों में कहीं नही दिखी। तभी तो भाऊ को सभी शत शत नमन करते हैं।
कोरोना के बढ़ते संकट पर विचार करने को कोई भी पार्टी तैयार नहीं।ज़िला कलेक्टरों के पूरे राज्य में हाल ये हैं कि वे बेचारे अपनी जान में कोरोना से लड़ने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे। जी जान लगा रहे हैं मगर कोरोना किसी भी तरह उनके काबू में नहीं आ रहा। लोगों की जान का दुश्मन बना हुआ है।
मैं कोई चित्रगुप्त नहीं, मगर जो कह रहा हूँ, सच होता जा रहा है। चार महीने से मैं जिन बातों को दोहराता रहा, वे सब की सब ज्यों की त्यों सही साबित हो रही है। मामूली से पत्रकार की हैसियत से जब मुझे आने वाला समय दिख रहा है तब सरकार में बैठे अति प्रबुद्ध राजनेताओं को यह क्यों नहीं दिख रहा यदि दिख रहा है तो वे क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। अरे भाई सिर्फ़ सत्ता बचाने से जनता नहीं बचेगी। सत्ता को जनता की जान भी बचानी होगी।
प्रजातंत्र के इतिहास में ऐसा काला समय कभी नहीं आया होगा जब कोई भी पार्टी अपनी कसौटी पर खरी नहीं उतर रही।
राम मंदिर बना कर भाजपा ने इतिहास रच दिया है मगर राजस्थान में उसकी भूमिका क्या है, यह सब जान गए हैं। जय श्री राम कहने से हमारी आत्मा शुद्ध हो सकती है मगर कोरोना का इलाज़ दवाईयों और वैक्सीन से ही होगा।
राम मंदिर हमारी आस्था से जुड़ा मुद्दा है और कोरोना हमारे होने या ना होने काहमारी ज़िंदगी का।  हमारे वजूद का हम ही नहीं रहेंगे तो इबादतगाह और पूजा अर्चना के स्थानों का क्या होगा
देश की सभी महत्वपूर्ण इबादतगाहें कई महीनों से बंद पड़ी हैं। उनके बंद होने से जनता को क्या नुक़सान हो रहा है खुल भी जाएंगी तो क्या फायदा हो जाएगा
भगवान राम त्रिपालों या पत्थरों में नहीं हमारे दिलों में रहते हैं और उनके लिए हमारे दिलों में विशाल पत्थरों को इकट्ठा कर खूबसूरत नक्शा बनाने की ज़रूरत नहीं।
राम मंदिर के शिलान्यास पर मैंने भी घर में घी के दीए जलाए ,राम धुन गाई, रामायण का पाठ किया मगर इसके साथ कोरोना से बचने के सारे जुगाड़ भी लगाए। काढ़ा भी पिया।प्राणायाम भी किया। यही आज के वक्त की अहम ज़रूरत है।
रोम रोम में बसने वाले राम को सर्दी गर्मी बरसात से बचाने की ज़रूरत नहीं।उस भक्त को बचाने की ज़रूरत है जिसके दिल में राम बसे हुए हैं। देश में राम भक्त तो कोरोना से मर रहे हैं। हमारी प्राथमिकता, उन्हें बचाने की होनी चाहिए। राम तो अपने आप बच जाएगा। वैसे भी उसे कौन मार सका है 
राजस्थान में सियासती ड्रामेबाजी ने पूरा एक महीना बर्बाद करके रख दिया है। मेरा वश चले तो मैं इन राजनेताओं को घर बैठा कर राष्ट्रपति शासन लागू करवा दूँ।
ये निकम्मे, नाकारा लोग जिन्हें जनता ने बड़ी आशाओं के साथ चुना ये ही अपने मतदाताओं की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। रोम जल रहा है और नीरो जगह-जगह बंसिया बजा रहे हैं।
जरा सोचिए कि हमने अपने बुरे दिनों के लिए इन्हें रक्षक बनाया था या मौज मस्ती करने के लिए  विधायक चाहे मानेसर में रहें या जैसलमेर में  हमारे लिए कोई अर्थ नहीं रखते। मुख्यमंत्री सचिन पायलट बने या अशोक गहलोत बने। सतीश पूनिया बने या वसुंधरा राजे । हमारी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता । हम अपने राशन का ख़ुद इंतज़ाम करते हैं।
हमारे दैनिक जीवन में ज़हर घुलता रहे और ये निकम्मे , नाकारा (ये शब्द मेरे नही गहलोत जी के हैं) लोग मुख्यमंत्री बनने की लड़ाई ही लड़ते रहें। बंदरबांट में लगे रहें। यह कहां तक ठीक है
राज्य में कांग्रेस संकट में है तो भाजपा भी कम संकट में नहीं। बाहर खड़े होकर मेंढे लड़ाना, मुर्गे बाज़ी करना एक सीमा तक ही ठीक होता है।
जब प्रदेश की जनता की जान जोखिम में हो तब सभी पार्टियों को एक होकर जनता के साथ हो जाना चाहिए। कितना अच्छा होता कि राजस्थान में कोरोना से निबटने के लिए कांग्रेस और भाजपा एक जाज़म पर आकर क़दम से क़दम मिलाकर चलती
मुझे एक कहानी याद आ रही है। एक गुरुजी थे। उनके दो चेले थे। गुरु जी का नाम जनता प्रसाद था। चेलों में से एक का नाम कांग्रेसी लाल दूसरे का नाम भाजपाई लाल । दोनों रात में गुरु जनता प्रसाद जी के पैर दबाया करते थे। एक दिन कांग्रेसी लाल बीमार पड़ गया उसकी जगह भाजपाई लाल ने पैर दबाए ।पैर दूसरे के हिस्से का था इसलिए भाजपाई लाल ने मौका देखकर कांग्रेसी लाल का पैर तोड़ दिया। जब कांग्रेसी लाल लौटकर आया तो उसने अपने हिस्से का टूटा हुआ पैर देखा और उसने गुरु जनता प्रसाद जी का दूसरा पैर तोड़ दिया। इस तरह आपसी खींचातानी में गुरु जी के दोनों पैर टूट गए। राजस्थान में प्रजा के दोनों पैर बिल्कुल इसी तरह से तोड़े जा रहे हैं ।
ब्लॉग ज्यादा लंबा ना हो इसलिए संक्षिप्त में इतना बता दूँ कि यदि सचिन पायलट और गहलोत के बीच समझौता नहीं हुआ तो कांग्रेस सरकार का जाना तय है। अब यह समझौता कब कैसे और किन शर्तों पर होगा, यह हाईकमान ही जाने।
सचिन पायलट यदि ग़लती से भाजपा में शामिल हुए तो उनकी मिट्टी पलीत हो जाएगी। जैसे तैसे मुख्यमंत्री बन भी गए तो भाजपा की अंतर कलह के बाद वे भी सड़क पर आ जाएंगे । ज्यादा दिन मुख्यमंत्री नहीं रह पाएंगे।
भाजपा वसुंधरा से पंगा लेकर ख़तरा मोल नहीं लेगी।यह एकदम तय है। मैंने कल सुबह ही लिखा था कि वसुंधरा जी को दिल्ली बुलाया जाएगा। बात सही निकली। लोग कह रहे हैं कि हाईकमान उनकी चाबी कसेगा। पर मैं कह रहा हूं कि वसुंधरा जी ने भाजपा की इतनी शानदार चाबी कस दी है कि हाईकमान कुछ उल्टा सोच भी नहीं सकता।
एक वक्त था जब यही वसुंधरा जी , अमित शाह से मिलने के लिए 1 साल तक समय ही मांगती रही और उन्होंने मिलने का समय तक नहीं दिया। अब वसुंधरा जी की बारी है। उनका खून अमित शाह के खून से ज्यादा गाढ़ा है क्यों कि अमित शाह तो नाम से शाह हैं । वसुंधरा जी ने अभी तक भी राजस्थान में अपना विकल्प पैदा ही नहीं होने दिया।इसलिए भाजपा चाहे तो भी उन को दरकिनार नहीं कर सकती।


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