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क़लमकार: राजस्थान में जंगल राज स्थापित बाघों की संख्या बढ़ी,जंगल छोटे पड़े मरने के डर से आत्महत्या कर लें क्या

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July 29, 2020

जंगलों में बाघों की संख्या बढ़ रही है जंगल छोटे पड़ रहे हैं


राजस्थान में जंगल राज स्थापित

बाघों की संख्या बढ़ी,जंगल छोटे पड़े

मरने के डर से आत्महत्या कर लें क्या

सुरेन्द्र चतुर्वेदी

जंगलों में बाघों की संख्या बढ़ रही है। जंगल छोटे पड़ रहे हैं। यही वजह है कि बाघों का आपस में लड़ना जारी है। यह ख़बर राजस्थान की सियासत से सीधे तौर पर कोई संबंध नहीं रखती मगर दोनों खबरों को अखबारों के मुखपृष्ठ पर छापा गया है।
विधानसभा जंगल में तब्दील हो चुकी है। बाघों की संख्या के हिसाब से जंगल छोटे पड़ रहे हैं। बाघों के लड़ने का सिलसिला जारी है। कई प्रजातियों के बाघ हैं। एक ही प्रजाति में कई बाघों पर चर्बी चढ़ी हुई है।
जंगल में भले ही बाघों को नामों से नहीं जाना जाता हो मगर यहां तो बाघों के बाकायदा नाम हैं । किसी को अशोक गहलोत कहा जाता है। किसी को सचिन पायलट ,कोई सतीश पुनिया कहा जाता है तो कोई कलराज मिश्र ।सभी बाघों को अपनी उन्नत नस्ल का होने पर नाज़ है। सभी अपनी ताक़त का प्रदर्शन कर रहे हैं।
जंगल छोटे पड़ रहे हैं। क़दावर बाघों ने अपने बाड़े बना लिए हैं। जंगल छोड़कर होटलों में छिपे हुए हैं। शिकारी कोई नहीं ,सभी का अंदर छुपे हुए डर शिकार करना चाह रहे हैं। पूरे राज्य में जंगलराज की स्थापना हो चुकी है।
सच मानिए तो आज़ादी के बाद राजस्थान में ऐसा जंगलराज कभी नहीं आया। एक तरफ तो कोरोना ने राजस्थान की ज़मीन को खोखला कर दिया है, ऊपर से जोधपुर, अलवर, कोटा, बीकानेर, भरतपुर, जयपुर, अजमेर सभी ख़तरे के निशान से ऊपर संक्रमित हो चुके हैं। मौतों का सिलसिला रुक नहीं रहा।विस्फोटों का क्रम बदस्तूर जारी है। कोई रोकने वाला नहीं ।
सरकार अपने वजूद को बचाए रखने में इतनी मजबूर हो जाएगी, यह सोचा नहीं था। बाघ बाड़ों में बंद हैं। भेड़िए सड़कों पर घूम रहे हैं।
पिछले एक महिने में अपराधियों के हौसले पुलिस पर भारी पड़ रहे हैं। भाजपा नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ का कहना है कि पुलिस पिट रही है, अपराधी पीट रहे हैं।
बजरी माफिया तो ऐसे भेड़ियों में तब्दील हो गए हैं जो कानून की खुदाई करने तक में बाज़ नहीं आ रहे। पूरे राजस्थान में बजरी माफियाओं का बोलबाला है।
बाघ बाड़ों में छुपे हैं और भेड़िए राज्य पर राज कर रहे हैं। राज्य में चोरियों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।हत्याएं आम हो गई हैं। बलात्कार की घटनाओं में तेज़ी से इज़ाफ़ा हो रहा है। लूटपाट तो ऐसे हो गई हैं जैसे बच्चों का खेल राज्य की पुलिस नकारा और किस्तों में बिकी हुई नज़र आ रही है।
कोरोना योद्धाओं के रूप में नाम कमाने वाले अब चौथ वसूली में लग गए हैं। एक महीने में ही पुलिस की छवि फिर वर्दी वाले गुंडों जैसी होती जा रही है। अपराधी और पुलिस के व्यवहार में अब कोई अंतर नहीं रहा है।
जंगल छोटे पड़ रहे हैं। बाघ आपस में लड़ रहे हैं। बाघ बाड़ों में बंद हैं। भेड़िए शिकार ढूंढने निकल पड़े हैं। सियारों की चांदी हो रही है। लोमड़ियां नगर पालिका ,नगर परिषद और नगर निगम में घूम रही हैं। हिरण मारे जा रहे हैं। जंगल राज में अब यही सब कुछ हो रहा है।
राज्यपाल और गहलोत के बीच प्रेम पत्रों का सिलसिला चल रहा है। लव स्टोरी लिखी जा रही है। ज़िद की सूली पर चढ़ी हुई सियासत जनता देख रही है।
गहलोत विधानसभा सत्र बुलवा कर ही दम लेना चाहते हैं और कलराज मिश्र काल राज बनकर गहलोत की इच्छाओं का दम निकाल कर ही दम लेंगे।
सचिन पायलट भाजपा की छत्रछाया में अपनी अलग पटकथा लिख रहे हैं।
गहलोत को उकसाया जा रहा है। उनकी भाषाओं को गालियों में तब्दील करवाया जा रहा है। ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है ताकि अराजकता फैले। कोरोना का अजगर दिखाकर मंजन बेचने वाले गहलोत को केंद्र सरकार धर दबोचना चाहती है। देख लेना यही होगा।
आगामी 31 जुलाई को ईद व राखी के मौके पर वार्डों में बंद बाघों का भागना शुरु हो जाएगा। न सचिन पायलट के पास अपने बाघों को संरक्षित रखने की ताक़त शेष बचेगी ना गहलोत के पास। बाघों का भागना लाज़मी है और तब स्थिति भयावह होगी।भागे बाघ फिर बाड़ों में नहीं लौटेंगे।
राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की तैयारियां चल रही हैं। मौका ढूंढा जा रहा है। गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई इससे बेहतर मौका नहीं दे पाएगी।
कोरोना इधर हमारी जिंदगी को तीतर का बाल बना रहा है उधर सरकार अपनी करनी से बाज़ नहीं आ रही। परेशान जनता तो अब खुद चाहने लगी है कि यदि राष्ट्रपति शासन ही हमारी तकदीर में लिखा है तो कर दो। यह जंगलराज तो खत्म हो। मानसून रुठा हुआ है। इंद्र देवता नाराज़ हैं। जनता की किस्मत फूटी हुई है। हर तरफ निराशा है मगर मरने के डर से हम आत्महत्या तो नहीं कर सकते।

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