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July 27, 2020
राजस्थान में जनता के फ़ैसले को द्रोपदी बना कर ही छोडेगी सियासत
दुर्योधन बनते जा रहे हैं राज्यपाल कौरवों से व्यवहार कर रही है भाजपा।
गहलोत को संयम खोने पर किया जा रहा है विवश राष्ट्रपति शासन की ओर धकेली जा रही है जनता
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
राजस्थान में लोकतंत्र नहीं परलोकतंत्र स्थापित हो चुका है। लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर कांग्रेस पार्टी को अराजकता की तरफ बढ़ने के लिए उकसाया जा रहा है। कांग्रेस मतदाताओं के आदेश से जनतांत्रिक मूल्यों के साथ सत्ता में आई थी। उसने जनादेश के बाद भाजपा को सत्ता के नीचे उतारा था। बाक़ायदा भाजपा की गर्दन नाप कर। लेकिन अब जनता के आदेश की ही गर्दन नापी जा रही है।
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि यदि कांग्रेस विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करना चाहती है तो उसे येन केन प्रकारेण रोका क्यों जा रहा है राज्यपाल क्यों नहीं विधानसभा सत्र बुलाने की इजाज़त दे रहे हैं आखिर कौन सा डर सता रहा है उनको जो वे बहुमत वाली सरकार को सत्ता में काबिज़ नहीं रहने देना चाहते ऐसी क्या मजबूरी आ गई है की मुख्यमंत्री गहलोत को राजभवन के प्रांगण में जाकर अपना बहुमत दिखाना पड़ रहा है
यहां मैं आप सब को बता दूँ कि मैं मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा जनता को राजभवन घेरने की धमकी से सहमत नहीं हूँ। गहलोत द्वारा इस तरह की धमकी देना खुद प्रजातांत्रिक मूल्यों की दुर्गति करना है लेकिन इस बात को भी मैं मानता हूं कि भाजपा सत्ता पर काबिज़ होने के लिए अजगर बनी हुई है। उसकी जीभ गहलोत को डसने के लिए लप-लपा रही है। गहलोत को उकसाया जा रहा है। मरता क्या नहीं करता की मजबूरी में गहलोत को धमकियां देनी ही पड़ रही हैं।
राज्यपाल महोदय का में बेहद सम्मान करता हूँ। यह पद किसी पार्टी से होकर भले ही गुजरता हो मगर यह पद संवैधानिक है , जिसे निरपेक्ष भाव से फैसला लेने का अधिकार है।
राजपाल किसी भी पार्टी से आए ,आने के बाद उस पार्टी का नहीं रहता मगर व्यवहारिक रूप से ऐसा होता नहीं । न राजस्थान में ऐसा हो पा रहा है।
भाजपा के राजनेता रहे राज्यपाल अभी भी अपनी पार्टी को भूल नहीं पा रहे हैं। अभी भी वह भाजपा से ही निर्देशित हो रहे हैं। मेरे साफ-साफ और सच कह देने से हो सकता है राज्यपाल की गरिमा को ठेस पहुंचे ।मुझ पर मुक़दमा भी दर्ज़ करवाया जा सकता है मगर मैं पूरी जिम्मेदारी से कहता हूँ कि यदि राज्यपाल महोदय, ज़रा भी आत्मचिंतन करने लायक शेष बचे हों। अंतरात्मा उनके जिस्म का हिस्सा बनी हुई हो तो उन्हें तुरंत विधानसभा सत्र आहूत करने की आज्ञा देनी चाहिए।
यदि गहलोत के पास बहुमत है तो वे उसे सदन में सिद्ध करने के बाद सत्ता में काबिज रहने का लोकतांत्रिक अधिकार रखते हैं। ऐसा नहीं किया जा रहा ।मुझे पता है, ऐसा नहीं किया जाएगा। भाजपा हाईकमान गहलोत को सत्ता से बाहर करने की दिशा में इतना आगे बढ़ गया है कि वह अब पीछे हटना ही नहीं चाहता।
राज्य राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है। यह खुला सत्य है कि भाजपा के पास सत्ता में आने जितना संख्या बल नहीं है। सचिन पायलट से उन्हें बहुत उम्मीद थी। सचिन पायलट ने उन्हें यक़ीन भी दिलाया था कि वे इतना संख्या बल लेकर अलग होंगे कि भाजपा सत्ता में काबिज़ हो जाएगी मगर ऐसा हो नहीं पाया।
गहलोत के बाड़े से वे पर्याप्त विधायक अपने बाड़े में ला नहीं पाए। उन्हें अभी भी यकीन है कि यदि गहलोत अपनी बाड़े बंदी अनलॉक कर दें तो काफी विधायक उनसे आ मिलेंगे। हो सकता है, उनका सोच सही भी हो, मगर अभी तो गहलोत अपने बाड़े की कुन्दी खोल नहीं रहे। भाजपा भी चाहती है कि गहलोत अपने विधायकों को आज़ाद कर दें। इधर सचिन खुद अपना बाड़ा खोलना नहीं चाहते। शायद वह भी गहलोत की तरह डरे हुए हैं। यदि उनका बाड़ा खुला तो उनके विधायक भी हरामी गिरी कर सकते हैं।
कुल मिलाकर राजस्थान में आज़ादी के बाद की सबसे घटिया सियासत खेली जा रही है। आसार अच्छे नहीं ।जनता ठगी हुई है। उसने कांग्रेस को जिताया था मगर कांग्रेस को सत्ता से बाहर करके उनके फैसले को दुत्कारा जा रहा है। इस खेल का परिणाम राष्ट्रपति शासन ही हो सकता है मगर इस खेल में सचिन पायलट सबसे ज़्यादा घाटे में रहेंगे। उनकी पूरी छवि मिट्टी में मिल जाएगी।
राष्ट्रपति शासन लागू भी हो गया तो उम्र भर तो नहीं रहेगा। फिर चुनाव होंगे। गहलोत का क्या हश्र होगा, यह तो जनता तय करेगी मगर सचिन पायलट का राज्य में नाम लेवा नहीं बचेगा।
कांग्रेस आर पार की लड़ाई में मजबूर है। कुछ भी करेगी । कर भी रही है। उसके पास कोई विकल्प बचा भी नहीं है मगर जो कुछ हो रहा है राजस्थान के लिए अच्छा नहीं। राजस्थान की जनता के लिए अच्छा नहीं। प्रजातंत्र के लिए अच्छा नहीं ।अच्छा है तो वह सिर्फ कोरोना के लिए जो राज्य में बिना सरकार के हाथ पांव फैला रहा है।
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