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क़लमकार: काँग्रेस में खींचतान घमासान नेता बदज़ुबान , ख़तरे में हाईकमान

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July 27, 2020

हाईकमान कहे तो कुछ भी हो सकता है मगर कांग्रेस में हाईकमान है कहां मैं इसे ढूंढ रहा हूँ


काँग्रेस में खींचतान  घमासान
नेता बदज़ुबान , ख़तरे में हाईकमान

सुरेन्द्र चतुर्वेदी

हाईकमान कहे तो कुछ भी हो सकता है मगर  कांग्रेस में हाईकमान है कहां  मैं इसे ढूंढ रहा हूँ ।
हाईकमान में कौन-कौन लोग होते हैं, यह ढूंढा जाना चाहिए। काँग्रेस में तीन तो साफ़ नज़र आ रहे हैं। सोनिया गांधी , राहुल गांधी और प्रियंका गांधी । बाकी हाईकमान में कौन-कौन चिलगोजे हैं  कोई नहीं जानता। यूँ सुरजेवाला, ललित माकन, वेणुगोपाल और अविनाश पांडे भी अपने आप को हाईकमान मानकर राजस्थान की राजनीति में हस्तक्षेप करते रहे हैं।
किसी भी राजनीतिक पार्टी में हाईकमान वह सर्वशक्तिमान गिरोह मेरा मतलब टीम होती है जो पार्टी की नीतियां तय करती है। दल के नेताओं को अनुशासित रखती है। उसका आदेश सर्वोपरि होता है। कांग्रेस पार्टी में  हाईकमान और  लो -कमान  में कोई अंतर अब नज़र नहीं आ रहा।
पिछले लंबे समय से कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी कुत्ता- फ़ज़ीति हुए जा रही है और हाई कमान कुछ भी नहीं कर पा रहा। सच तो यह है कि हाईकमान नाम की चीज़ अब कांग्रेस में रही ही नहीं है। अब तो हर नेता हाईकमान की तरह रुतबा ग़ालिब कर रहा है।
अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों ने ही अपनी नाज़ायज़ ज़िद से हाईकमान की हवा निकाल कर रख दी है। दोनों ही नेता वह सब कर रहे हैं जो हाईकमान नहीं चाह रहा। अनुशासन नाम की कोई चीज़ पार्टी में बची ही नहीं है। बेचारा हाईकमान फुटबॉल बना हुआ है, जिसे कभी सचिन किक मार देता है तो कभी अशोक गहलोत।
सचिन पायलट अपने चिलगोजों के साथ अज्ञातवास पर चले गए हैं।वे कांग्रेस छोड़ना नहीं चाहते और कांग्रेस का दम भी निकालना चाहते हैं। अशोक गहलोत का हाल यह है कि वे खुद हाईकमान बने हुए हैं। किसी की एक नहीं सुन रहे ।सचिन पायलट ना हुआ उनका सौता हो गया। भले ही सत्ता चली जाए। पार्टी की 12 बज जाए गहलोत सचिन को ठिकाने लगा कर ही दम लेंगे।
बेचारा हाईकमान ठीक उस कुत्ते की तरह हो गया है जिसकी पौटी न लीपने के काम आ सकती है न पोतने के। पार्टी की कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी का अब तक इस कुत्ता फ़ज़ीति को लेकर कोई बयान नहीं आया है। राहुल गांधी के बारे में कुछ ना ही कहा जाए तो ठीक होगा।
खूबसूरत सचिन पायलट को मनाने में लगी हुई हैं प्रियदर्शनी प्रियंका गांधी जी। दो-चार दिनों से रोज़ सचिन पायलट से बात कर रही हैं। बातों का विषय क्या है, यह पता नहीं चल पा रहा ।कयास ही लगाए जा सकते हैं। मेरा भी कयास है कि वे निश्चित रूप से राजनीतिक बातें ही कर रहे होंगे। प्रियंका जी मना रही होंगी सचिन भैया को। कह रही होंगी कि भय्या पार्टी पर तरस खाओ! मान जाओ ! गहलोत की उम्र का लिहाज़ करो। वह तो हाईकमान को कहां पर रखकर चल रहे हैं, तुमको पता ही है। तुम तो कम से कम हाईकमान को वहां मत रखो।
हाईकमान ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है  उस बूढ़े गांधी को छोड़ो!! मुझ युवा शक्ति पर यकीन करो। पार्टी में रहो तो तुमको हम हाईकमान बना देंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष महामंत्री या जो तुम चाहो।
हाईकमान की अस्मिता दांव पर लगी हुई है। गहलोत ने इस बार लगता है सोच लिया है कि वह सचिन पायलट का राजनीतिक वध करके ही छोड़ेंगे। उधर सचिन पायलट अभिमन्यु की तरह मैदान में घुस तो गए हैं लेकिन बाहर निकल नही पा रहे या निकलना नहीं जानते।
भाजपा उन्हें उकसा तो रही है पार्टी में मिलाने के लिए मगर अंदर से वह भी डरी हुई है। सवाल वहाँ भी हाईकमान का ही है।
सचिन को क्या झांसा दिया जाए कौन सी पोस्ट का लालच दिया जाए मुख्यमंत्री बनाने का दें तो  मैं नागिन तू सपेरा वाला गीत सियासत गाने लग जाए। वसुंधरा के ज़हर से ज्यादा उनकी फुँफकार ख़तरनाक़ है। वे भी गहलोत के प्रति नरमी बरत सकती हैं। बस इसी डर से भाजपा का हाईकमान कोई स्पष्ट लालच पायलट को नहीं दे पा रहा।
उधर गहलोत भी कम जादूगर नहीं। वह भी मोदी की पूजा-अर्चना वाले मंत्र पढ़कर हाईकमान को दिखा चुके हैं कि भाजपा के विकल्प सचिन पायलट के लिए ही खुले नहीं हैं।
कुल मिलाकर कांग्रेस हाईकमान की जीभ मुंह से बाहर लटकी हुई है। इस बार ऐसा लग रहा है कि चिलगोजे हाईकमान को ले बैठेंगे। प्रियंका गांधी की पार्टी प्रियंका गांधी को ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल कर रही है। यदि यह तीर सही निशाने पर नहीं लगा तो राष्ट्रपति शासन के रास्ते खुल सकते हैं।
सच कहूं तो दोनों पार्टियों के हाईकमान की इज्जत द्रोपदी का चीर बनी हुई है। 

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