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July 24, 2020
गहलोत कोरोना से लड़ने में लगाएंगे अब पूरी ताक़त (सचिन से लड़ने के बाद बची भी है क्या
डॉ रघु शर्मा बढ़ाएंगे सेम्पलिंग ( मरीज़ों का इलाज़ कहाँ होगा
मूल्यों में भारी गिरावट देखो ज़रा नैतिक मूल्य
कड़वे ब्लॉग से राजनेताओं का स्वाद ख़राब: दे रहे हैं धमकियाँ
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि वह कोरोना से युद्ध लड़ने में अपनी पूरी ताक़त लगा देंगे। लोग उनसे पूछ रहे हैं कि अब उनमें ताक़त बची ही कहां है जो कोरोना से लड़ने में लगा देंगे उनकी सारी ताक़त तो आपस में लड़ने में ही ख़त्म हो चुकी है।
सरकार की प्राण वायु निकल चुकी है। अब तो केवल सरकार की लाश बची है जो भी होटलों में बंद है। ज़िन्दा होने की ग़लत फ़हमी पाले हुए सरकार यह नहीं देख रही कि कोरोना से राजस्थान की जनता किस स्तर पर संक्रमित हो चुकी है।
चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा ने बहुत दिनों बाद कल एक बेहद जिम्मेदाराना बयान दिया है कि कोरोना प्रभावित ईलाक़ों में सेम्पलिंग यानी जांच प्रक्रिया बढ़ाई जाएगी। पहली बार लगा की लाशों के बाड़े में से किसी मंत्री के जिंदा होने की आवाज़ आई। मैं उस आवाज़ का स्वागत करता हूँ। अभिनंदन करता हूँ। सेम्पलिंग की रफ्तार बढ़ाना वैसे तो दो माह पहले से हो जाना चाहिए था मगर कोई ना... अब तो बहुत ज़रूरी हो गया है।
......मगर यहाँ फिर एक सवाल उठता है कि सैंपलिंग बढ़ाने से होगा क्या सिर्फ़ रोगियों की संख्या में इज़ाफा आंकड़ों में बढ़ोतरी संक्रमित रोगियों का इलाज़ कैसे होगा और कौन करेगा
राज्य में अस्पतालों की हालत तो मुसाफिरखानों से भी बदतर हो चुकी है।
हाल ही में दैनिक नवज्योति अखबार में काम करने वाले नसीराबाद के एक कर्मचारी सुरेश सोनी अपने को दिखाने जवाहरलाल नेहरू अस्पताल गए। उन्हें दिल संबंधी शिक़ायत थी। कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे। कार्डियोलॉजी में गए तो कोरोना की जांच करवा दी गई। डॉ रघु शर्मा वाली सैंपलिंग । रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। बाद में उन्हें भर्ती कर दिया गया। चारों ओर पॉजिटिव मरीज़। दो दिन उनका जम कर ( ☺️)इलाज़ हुआ। पेरासिटामोल , क्रोसिन, खांसी की दवा दी गई ।डॉक्टरों ने इस वार्ड में मरीजों से लंबी दूरी बना ही रखी है। वे छूना क्या देखना भी पसंद नहीं करते। नर्सिंग स्टाफ भी उन्हें अछूत मानता है। हां, वार्ड के मरीजों का इलाज़ स्वीपर ज़रूर करते हैं। वहीं उन्हें दवा देने आते हैं। पानी की बोतल और उच्च स्तरीय खाना() दे दिया जाता है।
कमाल यह है कि मरीज़ ठीक हो जाते हैं। हा हा हा हा सुरेश सोनी भी दो दिन में ठीक हो गए। मामूली सी गोलियां जो कोई भी मेडिकल स्टोर वाला बिना डॉक्टर की पर्ची के ही दे देता है, वो दवाई सुरेश सोनी को दी गई और 2 दिन में उनकी पॉजिटिव रिपोर्ट नेगेटिव हो गई। उन्हें वापस नसीराबाद भेज दिया गया। उनका कोरोना ठीक हो गया।
_दो दिन के इलाज़ में ही कोरोना गया श्रीमती गधी की .....में।
सुरेश सोनी अकेले ऐसे मरीज़ नहीं, जो पॉजिटिव से नेगेटिव हो गए हों। ऐसे एक दर्जन लोगों के नाम मैं महान चिकित्सा अधिकारी श्री के के सोनी को दे चुका हूँ और दे सकता हूँ। डॉक्टर रघु शर्मा सैंपलिंग तेज़ करने की बात करते हैं। उन्हें क्या पता कि राज्य के अस्पतालों की ज़मीनी हक़ीकत क्या है? डॉ लौंगानी इसलिए जान गंवा बैठे कि अजमेर में हर बार उनकी जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई और जयपुर में उन्हें पॉजिटिव बता दिया गया। डॉ गोखरू किस तरह से जिंदा रहे हैं, यह उनका दिल ही जानता होगा। डॉ गोखरू का खुद का इलाज जयपुर में करवाना अपने आप ही सरकारी अस्पतालों की हालत बयां करता है। नेगेटिव पॉजिटिव का खेल अजमेर में बेहद लोकप्रिय है। कोई भी कभी भी पाला बदल लेता है
अस्पतालों की हालत नर्क से भी बदतर हो चुकी है। डॉक्टरों के डर इतने बढ़ गए हैं कि वे ढंग से मरीजों का इलाज़ करना ही नहीं चाहते।
निजी अस्पतालों का इलाज़ इतना महंगा है कि आम आदमी तो सोच भी नहीं सकता। जयपुर में कोरोना का इलाज़ पांच से दस लाख रु तक होता है। इतने महंगे इलाज़ से तो रोगी मरना ही बेहतर समझता है।
रघु शर्मा की संवेदना को नमन करते हुए मैं उनसे आग्रह करता हूँ कि वे पाँच सितारा होटल वाले सरकारी बाड़े से केवल मीडिया से रूबरू होने के लिए बाहर नहीं आएं बल्कि राज्य के उन इलाकों में ख़ुद जांच करने जाएं, जहां सेम्पलिंग बढ़ाने की वे बात करते हैं। यदि वे ऐसा कर पाए तो राज्य पर उनका बहुत बड़ा एहसान होगा। यह अहसान आम आदमी कभी नहीं भूलेगा।
वे ज़रा सरकारी वार्डो में जाकर चिकित्सा व्यवस्थाओं का निरीक्षण तो करें। अपनी नैतिक जिम्मेदारी तो निभाएं। उन्हें मालूम तो चले कि सरकार की नीयत और हकीकत में कितना अंतर आ चुका है।
कोरोना के शुरुआती दौर में चिकित्सा विभाग और पुलिस विभाग सच में जी जान लगाकर सेवा कर रहा था। लोग उन पर फूल बरसा रहे थे। अब वे फूल लाशों को भी नसीब नहीं हो रहे।
अशोक गहलोत के कहे अनुसार सचिन अभी तो निकम्मे नकारा और धोखेबाज साबित नही हो रहे हैं बल्कि गहलोत की ये टिप्पणी अब खुद उन पर ही लागू होती दिख रही है। अपनी कुर्सी बचाने के लिए उन्होंने जनता को बेवकूफ समझ रखा है। यह नहीं समझ रहे कि जनता उनका कस बल वक्त आने पर ब्याज सहित निकाल देगी।
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