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#मधुकर कहिन: बहुत जल्दी में लगते हैं सचिन पायलट

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July 13, 2020

जब से काँग्रेस ने राजस्थान में सरकार बनाई है, उसके बाद से लगातार सचिन पायलट की महत्वाकांक्षा उनके लिए

बहुत जल्दी में लगते हैं सचिन पायलट !!!

जब से काँग्रेस ने राजस्थान में सरकार बनाई है, उसके बाद से लगातार सचिन पायलट की महत्वाकांक्षा उनके लिए ही नहीं उनके गुट के कई नेताओं के लिए सरदर्द बन गया है। सचिन पायलट के पास ना तो अभी उम्र है ना तजुर्बा और ना ही संख्या। ऐसे में उनकी मुख्यमंत्री बनने की बाल हठ कहीं कांग्रेस को ही न ले डूबे । सचिन पायलट का बचपना पायलट की राजनीतिक छवि को कितना नुकसान पहुंचा रहा है , इसका अंदाजा अभी पायलट को नहीं है। पायलट अपनी तुलना मध्य प्रदेश के ग्वालियर राजघराने के युवराज ज्योतिरादित्य सिंधिया से करते होंगे। परंतु यह तुलना करना उनकी गलती है । ज्योतिरादित्य सिंधिया का परिवार मध्य प्रदेश में ही नहीं पूरे भारतवर्ष में अव्वल दर्जे के राजघरानों में गिना जाता है । यदि पायलट यह सोच रहे हैं कि वह इस तरह का खेल खेलकर राजस्थान में मुख्यमंत्री बन जाएंगे तो वह गलत है । सुनाई दिया है की ज्योतिराज सिंधिया के समर्थन और व्यवस्था से ही पायलट इस तरह से कांग्रेस की पीठ में छुरा घोपनें की तैयारी कर रहे हैं। परंतु उन्हें यहां यह चीज भी सोचनी चाहिए कि राजस्थान में बड़ा सफल मुख्यमंत्री काल निकालने वाली वसुंधरा राजे सिंधिया भी उसी परिवार की सदस्य हैं। तथा पायलट का यह कदम कहीं आगे जाकर उनके लिए ही आत्मघाती साबित ना हो जाए। एन वक्त पर ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने परिवार की विजय राजे सिंधिया को ही पुनः भाजपा का मुख्यमंत्री ने बनवा बैठे। ऐसी स्थिति में सचिन पायलट की क्या हालत होगी वह सोचने लायक है। राजनीति सिर्फ जो दिखाई देती है वह नहीं होती । जबकि शतरंज के 64 खानों में से पता नहीं कितनी गहरी चालें और निकलेंगीं और पर्दे के पीछे क्या खेल खेला जाएगा उसका अंदाजा कम से कम सचिन पायलट जैसा अपरिपक्व नेता तो नहीं लगा सकता। पायलट अगर यह सोच रहे हैं कि यह मुख्यमंत्री का पद उन्हें उनके राजनीतिक कौशल से मिला है। तो वह बहुत बड़ी गलतफहमी में है। क्योंकि यह पद उन्हें उनके परम मित्र रहे राहुल गांधी की अनुकंपा से ही मिला है। वरना पायलट में कोई ऐसी खास बात नजर नहीं आती कि वह उप मुख्यमंत्री भी रह सकें । पायलट की तुलना में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कद निश्चित तौर पर हर हाल में बड़ा है। और जैसा इतिहास गवाह है कि गहलोत ने आज तक कोई हारने वाला खेल नहीं खेला है। और अपनी कूटनीति से सदा ही गहलोत की जीत हुई है। वैसा ही इस बार भी होगा। पायलट का बार बार मुख्यमंत्री बनने का प्रयास उनकी छवि केवल कांग्रेस में ही नहीं भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों में भी खराब कर रहा है। क्योंकि उनका यदि यही व्यवहार रहा तो चाहे वह कांग्रेस छोड़कर किसी भी पार्टी में जाने की तैयारी कर रहे हो , उस पार्टी में जाकर भी उन्हें खास इज्जत नहीं मिलने वाली है। क्योंकि कहीं ना कहीं परंपरागत रूप से कांग्रेसी परिवार से होते हुए अपनी ही माता कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंपनें का यह कृत्य भाजपा में भी उन्हें सम्मान दिलवा नहीं पाएगा । वह ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं है जिनका पूरा परिवार पहले से ही भाजपा में शामिल था। ज्योतिरादित्य के पिता भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए थे । और कांग्रेसी रहते हुए ही परम गति को प्राप्त हुए। सिंधिया की बुआ वसुंधरा राजे सिंधिया वैसे भी भाजपा का बहुत बड़ा चेहरा हैं। सिंधिया की दादी जनसंघ से थी।
समंदर अगर समंदर में मिल जाए तो कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन सचिन पायलट के पास ना तो राज परिवार वाला डीलडोल है । ना ही राजस्थान की धरती पर राजपरिवार जैसी मजबूत पकड़। बात उन विधायकों की तो वह विधायक जो पायलट के साथ भाजपा जाना चाहते हैं, वह मात्र अपने फायदे के लिए जा रहे हैं। सचिन पायलट के नेतृत्व में नहीं ।
बात अगर अजमेर की करें तो अजमेर में हालात थोड़े गंभीर रूप ले सकते हैं। क्योंकि अजमेर में चारों तरफ पायलट वंशी ही पायलट वंशी दिखाई देते हैं। अजमेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन सचिन पायलट की बदौलत ही अध्यक्ष है। वहीं पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता महेंद्र सिंह रलावता सचिन पायलट की बदौलत प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सचिव हैं।
इन नेताओं का रुख ही आने वाले समय में उनका राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा और अजमेर के मैं कांग्रेस की दिशा भी।

होगा वही जो राम रच राखा

जय श्री कृष्ण

नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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