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October 29, 2018
बरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला लिया है उसका हर हालत में पालन होना ही चाहिए।
कुछ कट्टरपंथी अगर इस फैसले का विरोध कर रहे हैं तो उन पर सख्ती की जानी चाहिए।
आखिर हम 21 वीं शताब्दी में जी रहे हैं और पुरातन आस्थाएं जो अप्रासंगिक हो गईं हैं बदली जानी ही चाहिएं।
अगर कुछ लोग वर्जनाओं में जीना चाहते हैं तो कानून उन्हें इसका अधिकार नहीं देता।
केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने में लगी हुई है इसका उसे श्रेय मिलना चाहिए।
यहां एक बात समझ में नहीं आई कि कैसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जिनकी कि सरकार देश पर शासन कर रही है केवल विशुद्ध वोटों की राजनीति करते हुए न्यायपालिका को एक तरह से निर्देशित कर रहे हैं कि उसे किस तरह के फैसले लेने चाहिएं।
अमित शाह का बयान जो कानून व्यवस्था के खिलाफ तो है ही यह संविधान विरुद्ध भी है।
अमित शाह को इतना ही फैसले करवाने का शौक है तो उन्हें राजनीति छोड़कर न्यायपालिका से जुड़ना चाहिए।
जो व्यक्ति केरल सरकार के मना करने के बावजूद उद्घाटन से पहले कन्नूर एयरपोर्ट पर उतरे मतलब जो खुद व्यवस्थाएं तोड़ने की पहल करे , जो नियम कायदे को ना माने वह व्यक्ति देश की सर्वोच्च न्यायपालिका से कहता है कि फैसले ऐसे ना दिए जाएं जो लागू न हो सकें।
कितना हास्यास्पद लगता है।
अमित शाह के बयान से ऐसा लग रहा है ( भले ही यह सच नहीं है) कि सरकार का न्यायपालिका पर कुछ नियंत्रण है , जो कि अच्छी स्थिति नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीतिज्ञ अमित शाह के इस बयान का कुछ अच्छा मतलब नहीं निकालेंगे।
मेरा ऐसा मानना है मोदीजी को अमित शाह के सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध दिए गए इस बयान पर अवश्य ही संज्ञान लेना चाहिए।
अगर ऐसा ना हुआ तो सुप्रीम कोर्ट की साख को धक्का लगेगा।
वैसे सुप्रीम कोर्ट को अमित शाह के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य ही देनी चाहिए।
जयहिंद।
राजेन्द्र सिंह हीरा
अजमेर
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