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October 15, 2018
जातिगत राजनीति इस देश के लिए खाज भरे कोढ़ के समान है। जाति की राजनीति करके राजनीतिक पार्टियां समाज और देश को बांटने का काम कर रहीं हैं और मजे की बात देखो पार्टियां इसे स्वीकारती तो हैं पर नकारती नहीं।
ऐसा इसलिए कि पार्टियों का ध्येय विशुद्ध रूप से सत्ता हासिल करना है।
अब आइए विचार करें क्या हमारे विरोध करने से राजनीतिक पार्टियां मान जाएंगी ?
कदापि नहीं क्योंकि उनका ध्येय केवल और केवल सीट जीतना , सत्ता हासिल करना होता है अगर ऐसा नहीं होता तो sc/st नियम में बदलाव करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध जाकर अध्यादेश नहीं लाया जाता , पर मौजूदा मोदी सरकार ने ऐसा किया।
भाजपा हो या कांग्रेस , सपा या बसपा कोई भी दल इस बीमारी से अछूता नहीं है।
नरेश राघानी के लेख "आगामी चुनावों में उतरेगी....."
के सन्दर्भ में में कहना चाहूंगा कि उनका दीपक हासानी के समर्थन में उतरने के पीछे सचिन पायलट का इस बात से सहमत होना है कि इसबार अजमेर उत्तर से किसी सिन्धी को ही उम्मीदवार बनाया जायेगा।
आप अजमेर उत्तर को ही क्यों देख रहे हैं , अजमेर दक्षिण से भी तो यही हो रहा है।
भाजपा की अनीता भदेल या किसी भी अन्य अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के सामने कांग्रेस ने हेमन्त भाटी या अन्य अनुसूचित उम्मीदवार सोच कर रखा है।
अजमेर दक्षिण पर तो कोई बहस कर ही नहीं रहा है।
सवाल यह भी उठता है कि क्या हम इतने जागरूक और समझदार हो गए हैं कि पार्टियां भले ही जातिगत राजनीति करें पर हम उन्हें आईना दिखा सकें ?
जिस दिन राजनीतिक पार्टियां जान जाएंगी कि जनता जाति नहीं काबलियत देकर वोट देने लगी है उस दिन यह बीमारी स्वतः समाप्त हो जाएगी
जयहिंद।
राजेन्द्र सिंह हीरा
अजमेर
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