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October 13, 2018
दोस्तों राजनीति सिंहासन की दौड़ है।
इसका ध्येय केवल और केवल सत्ता हासिल करना भर रह गया है।
को ना तो आपसे (जनता से) कोई सरोकार है और ना ही कोई परवाह।
जनता तो मोहरा भर है राजनीति को सिंहासन तक पहुंचाने का।
आप (जनता) मोहरा बनें रहे इसके लिए आपको लुभाया जाता है , भरमाया जाता है और तो और सब्जबाग भी दिखाए जाते हैं।
पर यह सब बिना धन के सम्भव नहीं है।
पिछली सरकार ने धन कमाने के लिए घोटाले किए और इस सरकार ने पिछली सरकार के घोटालों पर वार करके अपनी ईमानदारी के जाल में आपको फंसाकर सत्ता हासिल की।अब अगले चुनाव को जीतने के लिए फिर धन चाहिए तो धन तो धनकुबेरों से मिलता है। कॉर्पोरेट जगत से मिलता है। ये अगर चार पैसे देते हैं तो बीस पैसे इनको देने पड़ते हैं।
तो घोटालों की शक्ल बदल दी गई है।
वो इस तरह कि बड़े बड़े कॉन्ट्रैक्ट कॉर्पोरेट जगत को दिए या दिलाए जाते हैं भले ही सरकारी खजाने का नुक़सान हो पर इनको फायदा ही फायदा होता है।
बदले में सरकार की जीत के लिए पार्टी को पैसा चुनाव लड़ने के लिए दिया जाता है।
मोदीजी भले ही ईमानदार हों पर पार्टी के भ्रष्टों लोगों को बचाना इनकी अनिवार्यता रहेगी वरना पहले पार्टी फिर सरकार टूट जाएगी।
ऐसे में यह उम्मीद करना कि सरकार भ्रष्टाचार मुक्त शासन देगी बेमानी है।
चूंकि सरकार में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है सरकार किसी भी ऐसे व्यक्ति को पार्टी का उम्मीदवार नहीं बना सकती जो योग्य और ईमानदार हो क्योंकि ऐसे काबिल उम्मीदवार से पार्टी को खतरा बना रहता है।
इसीलिए पार्टियां अपनी पसंद का एक तरह से बंधुआ उम्मीदवार चुनती हैं जो उनकी हां में हां मिलाने के साथ अपनी तरफ से धन भी खर्च करे।
अब यहां धन वही खर्च करता है जिसे उसने अवैध रूप से कमाया हो और उसे जीतने के बाद कई गुना में कमाना भी चाहेगा।
इसीलिए इस देश से भ्रष्टाचार ख़तम करने की बातें तो बहुत होंगी पर यह ख़तम होगा नहीं।
सबसे बड़ी बात जो है वो है कि व्यवस्था से लड़ने के लिए उबाल मारे लोगों में वो खून रहा है नहीं।
देश बंधुआ मानसिकता वाला बनकर रह गया है।
क्षमा चाहते हुए
राजेन्द्र सिंह हीरा
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